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चारित्र चक्रवर्ती कैसे पथप्रदर्शक मानेगा?" इस वषय में सोमदेवसूरि का यह आदेश भी ध्यान में रखना श्रेयस्कर है कि उन लौकिक विधि विधानों का तुम सादर स्वागत कर सकते हो, जो तुम्हारी पवित्र श्रद्धा तथा व्रताचरण में बाधा नहीं डालते।
'यशस्तिलक' में लिखा है कि गृहस्थ को भोगशून्य समय व्रतरहित नहीं बिताना चाहिए। जब तक विषयों का उपभोग नहीं होता है, तब तक भी गृहस्थ को उपभोगों का पुन: प्रवृत्ति पर्यन्त त्याग देना हितकारी है। कारण देववश यदि सहसा प्राणान्त हो जाय तो यह त्याग देवगति का कारण हो जायेगा।
आशाधरजी ने कहा है, “गृहस्थ का कर्तव्य है कि जब तक विषयादिक के सेवनार्थ प्रवृत्ति नहीं होती है, तब तक के लिए मैं उनका त्याग करता हूँ, ऐसा संकल्प करें। इस प्रकार का संकल्प लेने वाला गुरु का नाम स्मरण पूर्वक निद्रा लेना आदि काम करें। दैववश यदि आयु का क्षय हो गया, तो यह त्याग भी महान् फल का दाता हो जायेगा। अत: भोगरहित समय को व्रत के बिना व्यतीत न करें।" प्रमाद का रोग
सत्कार्यों के करने में प्राय: दीर्घसूत्रता का दोष चिपका रहता है। आदमी सहज सरल भाव से सोचा करता है कि आज नहीं कल, कल नहीं परसों उस काम को कर लेंगे।' जब 'कल', 'आज' के रूप में आता है, तो यह आगामी कल के ऊपर अपने निश्चय का भार लाद दिया करता है। धर्म के काम को शीघ्र करने की इच्छा दुर्दैववश नहीं होती, क्योंकि यह जैसे दूसरे कार्यों को आवश्यक मानता है, वैसा आत्मकल्याण की वार्ता को नहीं सोचता है। इसी से सुभाषितकार इस आत्मा को समझाते हैं कि विद्या और धन का संपादन करते समय अपने आपको अजर-अमर सदृश समझकर ज्ञानलाभ और धनसंचय को करो, किन्तु धर्म के विषय में बिल्कुल ही भिन्न नीति का आश्रय लो। यह समझो कि मृत्यु ने मेरी चोटी पकड़ ही ली, अत: एक क्षण भी धर्म विहीन, व्रताचरण शून्य नहीं जाने दो। आत्महित में शीघ्रता करनी चाहिए
आचार्यश्री भी कह रहे थे, “भविष्य का क्या भरोसा, अत: शीघ्र आत्मा के कल्याण के लिए व्रत ग्रहण कर लो।" इस प्रसंग में पद्यपुराण का एक वर्णन बड़ा मार्मिक है- सीता के भाई भामंडल अपने कुटुम्ब परिवार में उलझते हुए यह सोचते थे कि यदि मैंने जिनदीक्षा ले ली, तो मेरे वियोग में मेरी रानियों आदि का प्राणान्त हुए बिना नहीं रहेगा, अत: कठिनता से त्यागे जाने योग्य, कठिनाई से प्राप्तव्य सुखों को भोग, पश्चात् आगे कल्याणपथ में प्रवृत्ति करूंगा। मैं भोगों से उपार्जित अत्यन्त घोर पाप को भी सुध्यान रूपी अग्नि के द्वारा क्षणभर में ही भस्म कर डालूंगा। मैंने अब यह कर लिया, अब यह कर रहा हूँ तथा आगामी यह
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