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व्रत के समर्थन में समर्थ वाणी
व्रत ग्रहण करने में जो भी भयभीत होते हैं, उनको साहस प्रदान करते हुए महाराज बोले, "जरा धैर्य से काम लो और व्रत धारण करो । डर कर बैठना ठीक नहीं है। ऐसा सुयोग अब फिर कब आएगा ? कई लोगों ने व्रतों का विकराल रूप बता-बता कर लोगों hasar और भीषणता की कल्पनावश लोग अव्रती रहे आते हैं, यह ठीक नहीं है । " उन्होंने यह भी कहा, “हमारे भक्त, शत्रु, मित्र, सुधारक अथवा अन्य कोई भी हो, हम सबको व्रत ग्रहण करने का उपदेश देते हैं । व्रत ग्रहण करने वाला आगामी देवायु का नियम से बंध करता है। जिन्होंने इससे अन्य अर्थात् नरक, तिर्यंच अथवा मनुष्य आयु धर लिया है, उसके व्रती बनने के भाव नहीं होते हैं । "
चारित्र चक्रवर्ती
संयम में कष्ट नहीं है
लोग सोचते हैं कि संयम पालन करने में कष्ट होता है, उनके संदेह को दूर करते हुए पूज्यश्री ने अपनी मार्मिक देशना में कहा, “संसार के कामों में जितना श्रम, जितना कष्ट उठाया जाता है, उसकी तुलना में व्रती बनने का कष्ट नगण्य है। लेन-देन, व्यापार, व्यवसाय आदि में, द्रव्य के अर्जन करने में कितना श्रम किया जाता है और इसका फल कितना थोड़ा सा मिलता है ? इतने दिन सुख भोगते - भोगते संतोष नहीं हो पाया, तो शेष थोड़ी सी जिंदगी में, जिसका जरा भी भरोसा नहीं है, तुम कितना सुख भोगोगे ? कितना संचय करोगे ? व्रती बनकर देवपर्याय में तुम्हें इतना सुख मिलेगा, जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हो। देवों को दशांग कल्पवृक्षों के द्वारा मनोवांछित सुख की मनोज्ञतम सामग्री प्राप्त होती है, वहाँ निरन्तर सुख रहता है। दिन और रात्रि का भेद नहीं रहता है । वहाँ बालपना बुढ़ापा न रह, सदा यौवन का सुख रहता है। वहाँ पाँचवे छट्ठे काल का संकट नहीं है । वहाँ खाने पीने का कष्ट नहीं है। अपने समय पर कंठ में अमृत का आहार हो जाता है। " देवपर्याय में लाभ
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देवपर्याय में धार्मिक लाभ भी होगा, इस विषय पर प्रकाश डालते हुए महाराज ने कहा, "वहाँ से तुम विदेह में जाकर भगवान सीमंधर स्वामी आदि तीर्थंकरों के समवशरण का दर्शन कर, सम्यक्त्व व का लाभ कर सकोगे। नंदीश्वरद्वीप के बावन जिनालयों में जाकर अकृत्रिम जिनबिम्बों के दर्शन के आनंद का लाभ ले सकोगे, जिनके दर्शन से मिथ्यात्व छिन्न भिन्न हो जाता है । वहाँ से विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर वज्रवृषभनाराचसंहननं को पाकर तुम मोक्ष पहुंच सकते हो। अतएव व्रती बनना महत्व का है। इसके सिवाय कल्याण का दूसरा मार्ग नहीं है ।" महाराज ने करुणाभाव में निमग्न होकर अपनी प्राणदायिनी वाणी में उपसंहार करते हुए कहा, “तुम्हारे हित की हम बात कहते हैं। तुम्हारे लिये खोटा बोलने का
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