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वातावरण थे कि वैभव के विलास में फंसने वाली आत्माएँ अपने विनाश की सामग्री एकत्रित करती हैं, अतः जिसे अविनाशी आनन्द चाहिये, उसे अपरिग्रहवाद के प्रकाश में अपने अन्त:करण को संयम रूपी जल से धोना चाहिये। उनका जीवन अहिंसामय था। मुनिराज के चित्र का प्रभाव ___ एक बार हमारे यहाँ उनके उक्त चित्र का दर्शन अनेक हिंदू, मुस्लिम, पारसी आदि साक्षरों/शिक्षितों ने किया, तो उनकी आत्मा आश्चर्य युक्त हो आनंद विभोर हो गई। एक सहृदय मुस्लिम जागीरदार कह उठे, धन्य है ऐसी आत्मा को।' उनके दिगम्बरत्व पर उन्होंने एक पद्य सुनाया कि दिगम्बरत्व से बढ़कर और कोई दूसरा वेष नहीं है। यह वह पोषाक है, जिसमें सीधे या उल्टे का भेदभाव नहीं है। __ एक दूसरे तत्त्व प्रेमी भाई बोल उठे कि श्रेष्ठ और उच्च जीवन तो इन महात्मा का है, जिन्होंने अपनी इंद्रियों को जीता है। जिनने व्याघ्र, सर्प आदि भीषण जन्तुओं को मारा है, उन्होंने कोई बड़ा काम नहीं किया। सबसे बड़ा शैतान इंद्रियों की लालसा है। जिसने इंद्रियों पर विजय प्राप्त की है, यथार्थ में वही व्यक्ति महान् है, उससे बड़ा और कौन हो सकता है ? पारे को मारकर सिद्ध रसायन बनाने वाले ने क्या बड़ा काम किया! यथार्थ में अपने अहंकार को जिसने मारा श्रेष्ठ वही आत्मा है। ऋषिराज का दर्शन
कुछ वर्षों के पश्चात् उन ऋषिराज का साक्षात् दर्शन मिला, तब ज्ञात हुआ कि उनका असाधारण व्यक्तित्व पूर्णतया उनके निकट संपर्क में आने से ही समझा जा सकता है। उनकी समस्त क्रियाओं को देखकर प्रत्येक विवेकी विद्वान् यह अनुभव करता था कि वे इस पंचम काल में चतुर्थ कालीन महामुनियों के समान निर्दोष आचरण करते थे। वे ही आज चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के नाम से श्रमण संघ के शिरोमणि के रूप में विख्यात हैं। लोक-जिज्ञासा
उनके जीवन के विषय में ऐसा कौन है, जिसे कि जिज्ञासा नहीं होगी ? अतएव यह आवश्यक है कि उस सम्बन्ध में विवेचन किया जाय । उनके जीवन पर प्रकाश डालने
तन की उरयानी से बेहतर है नहीं कोई लिवास। यह वह जामा है कि जिसका नहीं उल्टा सीधा ।। निहंगो अजदहाओ शेरो नर मारा तो क्या मारा, बड़े मूंजी को मारा नक्स अम्मारे को जो मारा । न मारा आपको जो खाक हो अक्सीर बन जाता, अगर पारे को अय अक्सीरगर मारा तो क्या मारा ॥
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