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प्रभात
१६ पहुँचे कि ये प्रकृति के विश्व विद्यालय की सर्वश्रेष्ठ परीक्षा में उत्तीर्ण सत्पुरुष थे, इसलिये इनके जीवन में पूर्णतया प्राकृतिकता का अधिष्ठान रहा है और उसमें किसी प्रकार की विकृति की कालिमा नहीं दिखाई पड़ती। सत्पुरुषों की जननी और जनक जिस प्रकार अपूर्वगुण सम्पन्न होते हैं, वही विशेषता पुण्यशीला माता सत्यवती और भव्य शिरोमणि श्री भीमर्गौडा पाटील के जीवन में थी। उनका गृह सदा बड़े-बड़े महात्माओं, सत्पुरुषों और उज्ज्वल त्यागियों की चरण-रज से पवित्र हुआ करता था। जब भी कोई निर्ग्रन्थ दिगंबर मुनिराज या अन्य महात्मा भोजग्राम में आते तो अतिथि-संविभाग कार्य में अत्यंत प्रवीण पुण्यशील माता सत्यवती के भवन को अवश्य पवित्र करते थे। वहां श्रद्धा, भक्ति, विवेक, विनय, आदि सब प्रकार के आंतरिक साधन तथा वैभवशाली होने के कारण बाह्य सामग्री सदा संतों के लिये उपस्थित रहती थी। बड़े-बड़े मुनिराज तथा तपस्वी लोग भोजग्राम के भूपति तुल्य श्री भीमगौंडा पाटील के यहाँ पधारते थे, जहाँ बालक सातगौंडा उनकी सेवा में तत्पर रह, उनके जीवन में धर्म के विकसित तथा परिपक्व स्वरूप को देखा करता था तथा उनके जीवन से उज्ज्वल जीवन बनाने की श्रेष्ठ कला सीखा करता था। यही बड़ी शिक्षा भाग्यशाली भव्य बालक को दिगंबर श्रमणों के निकट संपर्क से मिलती रही, जिसके कारण कुमार-काल में ही भोगों की दासता को छोड़ तपस्वी, मुनि बनने की प्रबल लालसा मन में उत्पन्न हो गयी थी। विदुषी धर्मवती माता से तीर्थकरों का चरित्र, मोक्षगामी पुरुषों की बातें तथा रत्नत्रय को पुष्ट करने वाली शिक्षा प्राप्त हुआ करती थी। वातावरण भी अलौकिक धार्मिक मनोवृति को विकासप्रद सामग्री प्रदान करता था। परिवार का उज्ज्वल वातावरण जीवन पर कैसा प्रभाव डालता है, यह बात भोज-भूमि में हमारे स्वयं दृष्टिगोचर हुई। महाराज के परिवार में उच्च संस्कार __इस वर्ष सन् १९५२ के ११ सितंबर को अष्टमी के दिन हमें उस पवित्र घर में भोजन मिला, जहाँ आचार्य महाराज रहा करते थे। उस दिन हमारे लिये लवण आदि षट्रस विहीन भोजन बनाथा। मैं भोजन करने बैठा। पास में महाराज के भाई का नातीभीमकुमार भोजन कर रहा था।
बालक भीम की थाली में बिना नमक का भोजन आया, इसलिये उसने अपनी माता से कहा कि माता मुझे नमक चाहिये।
पास में बैठी लगभग १० वर्ष की वय वाली बालिका बहन सुशीला बोल उठी कि भैया, जब तुम स्वामी (मुनि) बनोगे, तब तो बिना नमक का आहार लेना होगा, उस समय नमक कैसे मांगोगे?
उस समय भाई-बहन की स्वाभाविक बातचीत सुनकर मेरी समझ में आया कि
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