________________
चारित्र चक्रवर्ती ____एक समय कोल्हापुर के समीपवर्ती इस्लामपुर में मुस्लिम अधिकारी ने महाराज के
आम सड़क से निकलने के विषय में आपत्ति उपस्थित की थी। क्षण भर में आस पास के ग्रामों में यह समाचार फैल गया कि इस्लामपुर के मुस्लिम आचार्य महाराज के प्रति दुष्ट व्यवहार करना चाहते हैं। थोड़े समय में दस हजार से अधिक ग्रामीण जैनी चारों ओर से लाठी आदि लेकर आ गये। उस समय वह इस्लामपुर जैनपुर सा दिखता था। मुस्लिम लोग अपने अपने घरों में घुस गये। उन्हें अपनी जान बचाना कठिन पड़ गया। तत्काल मुस्लिम अधिकारी ने अपने नादिरशाही आर्डर को वापिस लिया। आचार्य शांतिसागरजी की जय जयकार करते हुए उस स्थान से विहार हुआ। महाराज का पुण्य-प्रताप ऐसा है कि बड़ी से बड़ी विपत्ति शीघ्र ही दूर होकर गौरव को वृद्धि करने वाली बन जाती थी। जीवन रक्षा
उनकी अपार सामर्थ्य को मैंने अपने जीवन में अनुभव किया। उन्होंने मेरे प्राण बचाये, मुझे जीवनदान दिया, अन्यथा मैं आत्महत्या के दुष्परिणाम स्वरूप ना जाने किस योनि में जाकर कष्ट भोगता। बात इस प्रकार है कि मेरे पापोदय से मेरे मस्तक के मध्यभाग में कुष्ठ का चिह्न दिखाई पड़ने लगा। धीरे धीरे उसने मेरे मस्तक को घेरना शुरू किया। मेरी चिंता की सीमा नही थी, मेरी मनोवेदना का पार न था। लोगों के सामने आने में मुझे बड़ा संकोच होता था। अवर्णनीय लज्जा आती थी। निर्दोष होते हुए भी लोग मुझे हीनाचरणवाला सोचेंगे, इससे मैं मन ही मन दुःखी हो रहा था। एक दिन मैं आचार्य महाराज के चरणों में पहुँचा।
आंखों से अश्रुधारा बहाते हुए मैंने अपने अंत:करण की सारी वेदना व्यक्त कर दी। उन्होंने मुझे बड़ी हिम्मत दी और आत्मघात करने को महान् पातक बता उससे मुझे रोका। एकीभाव का प्रभाव
उन्होंने मुझसे कहा-“घबराओ मत तुम्हारा रोग जल्दी दूर हो जावेगा। तुम प्रभात, मध्याह्न तथा सायंकाल के समय शुद्धतापूर्वक एकीभाव स्तोत्र का पाठ करो। तीन चार सप्ताह के बाद वह रोग दूर हो गया। एक विशेष उल्लेखनीय बात यह थी कि मेरे मस्तक में एक छोटा सफेद दाग शेष बचा था। मैंने कहा-“महाराज, यह दाग अभी बाकी है।" सुनकर पूज्यश्री ने अपना हाथ मस्तक पर लगाया, तत्काल ही वह सफेद दाग दूर हो गया। मैं गुरुप्रसाद से न केवल उस रोग से मुक्त हुआ बल्कि आत्मघात की विपत्ति से बचा। यह हाल बहुत लोगों को मालूम है । स्तवनिधि क्षेत्र में पायसागर महाराज ने आचार्य महाराज की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया था कि गुरुप्रसाद से ब्रह्मचारी जिनदास का यह रोग दूर हुआ था।
*******
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org