________________
लोकस्मृति
३८ थे। वे अपनी माता से कहा करते थे कि हम मुनि बनेंगे, हम यहाँ नहीं रहेंगे। वास्तव में वे महापुरुष थे। उनका उपदेश सर्वप्रिय तथा कल्याणकारी होता था। मधुर जीवन _ आचार्य महाराज के सबसे छोटे भाई श्री कुंमगौडा पाटिल के चिरंजीव श्री जिनगोंडा के पास जयसिंहपुर ग्राम में पहुँचकर ता. १३-०६-५२ को हमने उनके परिवार के सम्बंध में चर्चा चलाई। श्री पाटिल से उनकी आजी के विषय में महत्वपूर्ण बातें विदित हई। उन्होंने बताया “इस समय मेरी अवस्था ४८ वर्ष की है मुझे अपनी आजी माँ की थोड़ी-थोड़ी स्मृति है। जब मैं भोजन के समय हठ करता था, तब वे करुणामयी माता मनोवांछित पकवान बना मुझे मनाया करती थी।" वे मुझे अपने साथ सवेरे तथा संध्या को भोज के जिन मंदिर में ले जाती थी। वे मुझे कनड़ी भाषा में कहा करती थी- "बेटा हमेशा भगवान का दर्शन करना चाहिए, इससे सब सुख मिलते हैं।" वे मुझे अपनी गोद में लिये-लिये फिरती थी। मैं कितना भी उपद्रव करता था, वे कभी भी नाराज नहीं होती थी। यदि कोई घर का आदमी मुझे डाँटता था, तो आजी माँ कहती थी “बच्चे को प्रेम से समझाना चाहिए, उसे मारना पीटना नहीं चाहिए और न उस पर क्रोध ही करना चाहिए।" ___ हमारे घर में मुनिराज आदिसागर अंकलीकर, देवेन्द्रकीर्ति स्वामी आदि साधु लोग प्राय: पधारा करते थे। उस समय आजी माता उनकी सेवा, भक्ति तथा दानादि बड़ी खुशी से करती थी। शिक्षा
__ आजी माँ के चार पुत्र और एक पुत्री के बीच में एक मैं ही उनका नाती था। इस कारण आजी माँ की मेरे प्रति ममता होना स्वाभाविक बात थी। वे मुझे समझातीथी “बेटा कभी झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, दूसरे का उपद्रव नहीं करना इत्यादि।" उनकी वाणी बड़ी मधुर रहती थी। दु:खी व्यक्ति तथा निर्धन परिवार को वे संकट के समय सहायता देती थी। अतिथियों के सत्कार में उन्हें बड़ी प्रसन्नता होती थी। मेहमानों को बढ़िया भोजन कराना तथा वस्त्रादि से उनका सत्कार करना आजी माँ का प्रिय विषय था। घर में आजी माँ की बात को सब भाई बहन मानते थे। प्रभात में मेरे पिता
आदि आजी माँ को प्रणाम करते थे तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करते थे। वे अतिशय बुद्धिमती थी। इससे अनेक महिलाएँ उनके पास आकर बैठती थी तथा उनसे सलाह लिया करती थी। आजी माँ बडी उदार प्रकृति की थी। मेरे साथ खेलने वाले बच्चों को भी मेरे ही समान खिलाती थी। जब कभी बच्चों में झगड़ा होता, तो वे बिना धमकाये प्रेम से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org