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लोकस्मृति
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दर्शन करके उन्होंने सामायिक की तथा वे बाहर चले गये थे, ताकि किसी प्रकार का मोह उत्पन्न न हो। हजारों लोगों ने एकत्रित होकर भोज की विभूति का ही नहीं, विश्व की अनुपम निधि का दर्शन किया था। उनके जाने के बाद भोज भूमि प्राण शून्य सी लगती थी। हम लोग अपने को इसी बात में कृतार्थ मानते हैं कि हम लोगों का जन्म आचार्य शांतिसागर महाराज जैसे श्रेष्ठ नर - रत्न एवं श्रमण शिरोमणि की निवास भूमि में हुआ । वृद्ध मराठा का कथन ग्राम
ज्योति दमाले नाम का एक मराठा किसान ८० वर्ष की अवस्था का था। वह एक ब्राह्मण के खेत में मजदूरी करता रहा है। उस खेत से लगा हुआ एक खेत है, जहाँ महाराज का प्रतिदिन आना जाना होता था । उस वृद्ध मराठा को जब यह समाचार पहुँचा कि महाराज के जीवन के सम्बन्ध में परिचय पाने को कोई व्यक्ति बाहर से आया है, तो वह महराज का भक्त मध्याह्न में दो मील की दूरी से भूखा ही समाचार देने को हमारे पास आया। उस कृषक बाबा से इस प्रकार की महत्व की सामग्री ज्ञात हुई :
अपूर्व दयालुता
उसने बताया, “हम जिस खेत में काम करते थे उससे लगा हुआ महाराज का खेत था। हम उनको पाटिल कहते थे। हमारा उनसे निकट परिचय था । उनकी बोली बड़ी प्यारी लगती थी । मैं गरीब हूँ और वे श्रीमन् हैं, इस प्रकार का अहंकार उनमें नहीं था ।
हमारे खेत में अनाज खाने को सैकड़ो हजारों पक्षी आ जाते थे, मैं उनको उड़ाता था, तो उनके खेत में बैठ जाते थे । वे उन पक्षियों को उड़ाते नहीं थे। पक्षियों के झुंड के झुंड उनके खेत में अनाज खाया करते थे ।"
एक दिन मैंने कहा कि पाटिल हम अपने खेत के सब पक्षियों को तुम्हारे खेत में भेजेंगे ।
वे बोले कि तुम भेजो, वे हमारे खेत का सब अनाज खा लेंगे, तो भी कमी नहीं होगी। इसके बाद उन्होंने पक्षियों के पीने का पानी रखने की व्यवस्था खेत में कर दी । पक्षी मस्त होकर अनाज खाते थे और जी भर कर पानी पीते थे और महाराज चुपचाप यह दृश्य देखते, मानो वह खेत उनका न हो। मैंने कहा कि पाटिल तुम्हारे मन में इन पक्षियों के लिये इतनी दया है, तो झाड़ पर ही पानी क्यों नहीं रख देते हो ? उन्होंने कहा कि ऊपर पानी रख देने से पक्षियों को नहीं दिखेगा, इसलिये नीचे रखते हैं । उनको देखकर कभीकभी मैं कहता था - "तुम ऐसा क्यों करते हो ? क्या बड़े साधु बनोगे ?” तब वे चुप रहते थे, क्योंकि व्यर्थ की बातें करना उन्हें पसंद नहीं था। कुछ समय के बाद जब पूरी फसल आई, तब उनके खेत में हमारी अपेक्षा अधिक अनाज उत्पन्न हुआ था।
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