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अठहत्तर
चारित्र चक्रवर्ती मृत्यु स्वर्गादिक की संपदा ही देती है, मुक्ति नहीं ।
उपर्युक्त आगम वचनों के आश्रय से हम निश्चित ही कह सकते हैं कि अधिक से अधिक आगामी ७या ८ भवों में हम इन्हीं चारित्र चक्रवर्ती की जिनकी की आज आचार्य परमेष्ठी के रूप मे पूजा कर रहे हैं, सिद्ध परमेष्ठी के रूप में पूजा करेंगे।
हमने तो द्रव्य निक्षेप से आज से ही यह पूजा प्रारंभ कर दी है।
सातवाँ खण्ड :- उपर्युक्त ६खण्डों पर जिनका आधिपत्य था ऐसे षट् खंडाधिपति चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर के व्यक्तित्व में एक सातवां खण्ड भी था।
बाहुबली जैसे व्यक्तित्व चक्रवर्ती के षट्खण्डाधिपतित्व से न तो प्रभावित होते हैं और न ही उनकी अधीनता स्वीकार करते हैं। ठीक ऐसे ही व्यक्ति भी थे आचार्य श्री के काल में थे, जिन्हें उपर्युक्त ६ में से किसी भी कारण से सरोकार नहीं था। कोई सरोकार न होने पर भी अनायास/अकारण वे खींचे चले आये थे आचार्य श्री के श्री चरणों में व समर्पित कर दिये थे अपने मन, वचन व काय... ___ हम जान रहे हैं आपकी बलवती जिज्ञासा को, जो जानने को उत्सुक हैं कि वह सातवाँ खण्ड कौना सा था? तो इसका समाधान हम नहीं कर रहे हैं इसे, सेठ रावजी सखाराम दोशी के शब्दों में आचार्य श्री शांतिसागर महामुनि का चारित्र पृष्ठ १ सुनिये :-“वस्तुतः एक महापुरुष का लक्षण जो चाहिये, वह सब तो श्री महर्षि शांतिसागर में है ही किन्तु साथ में ये एक अलौकिक प्रतिभा से युक्त तपोनिधि है, कारण कि जहाँ इनका पदार्पण होता है, वहाँ के जैन हो या जैनेतर, हिन्दू हो या मुसलमान, इनके तप प्रभाव से आकृष्ट होकर इनके चरणों में झुकने लगते हैं। यह एक अलौकिक शक्ति के बिना नहीं हो सकता है।" ___ अब इस अलौकिक शक्ति के कार्य भी सुन लीजिये :-“सौ बात की एक बात यह है कि सैंकड़ों कर्मठ विद्वानों के सैंकड़ों वर्ष तक रात दिन परिश्रम करने पर भी जो समाजोत्थान व समाजकल्याण का कार्य अति कठिनता से हो सकता था, वह त्यागमूर्ति आचार्य श्री शांतिसागर के विहार से कुछ ही दिनों में सरलतया हुआ॥"
प्रिय पाठकों क्या उपर्युक्त वक्तव्य के पश्चात इस सप्त खंडाधिपति चारित्र चक्रवर्ती के आख्यान में और कुछ कहने को शेष रहता है ? नहीं न ? अतः हम भी अब और अधिक कुछ न कहते हुए आचार्य श्री के दिवंगत चरणों में अपना परोक्ष नमस्कार अर्पित कर, संपूर्ण संसार के लिये लौकिक व लोकोत्तर मंगलों की कामना करते हैं। ॐ शांति, शांति, शांति॥
-हेमन्त काला,
इंदौर(म.प्र.) दिनांक : १.२.२००६
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