________________
.
.
.
.
..
.
.
.
.
.
. M
.
.
. N
.
. A ..........
..
.
....
. -
+-
.. . 4 : 14 .
in -....--AC-CACCIDE
....-..
..
...
...
damp; even then he should not accept any food brought with such damp hands (etc.).
If he finds that although the hands (etc.) are neither wet nor damp but are smeared with any of these things-sachit sand, salty sand, yellow orpiment, cinnabar, mensil, anjan (antimony powder), salt, red ochre, yellow clay, chalk, Saurashtrika or gopichandan, bran, paste of piluparnika leaves etc.; in that case also he should not accept food (etc.) brought with such smeared hands.
(c) If he finds that the hands (etc.) of the donor are not wet with sachit (contaminated with living organisms) water, not smeared with sachit sand (etc.), but are smeared only with the thing he is giving, in such case he may, if given, take it considering the food brought with such smeared hands (etc.) to be uncontaminated and acceptable.
विवेचन-सूत्र ३३ में दाता के हाथ, बर्तन, कुड़छी आदि यदि सचित्त जल आदि से सना या भीगा हो तो उनसे आहार ग्रहण नहीं करना और यदि असंस्पृष्ट (अलिप्त) है तो आहार लेने का विधान है।
इस प्रकार के गीले हाथों से लेने में हिंसा का दोष मुख्य रूप में लगता ही है। आज के विज्ञान की दृष्टि से भी अशुद्ध जल में वैक्टीरिया आदि होते हैं, उस अशुद्ध जल से भीगे हाथ, बर्तन आदि से वस्तु का स्पर्श होगा उसमें भी वे वैक्टीरिया संक्रमित हो जाते हैं। इस तरह यह विधान आरोग्य विज्ञान की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
निशीथ भाष्य की चूर्णि में संसृष्ट के अठारह दोष इस प्रकार बतलाये हैं(१) पुरेकम्म-पूर्वकर्म (साधु के आहार लेने से पूर्व हाथ आदि धोकर देना)। (२) पच्छाकम्म-पश्चात्कर्म (साधु के आहार लेने के पश्चात् हाथ आदि धोना)। (३) उदउल्ले-उदकाई (बूंदें टपक रही हों, इस प्रकार से भीगे हाथ आदि)। (४) ससणिद्धं-संस्निग्ध (केवल गीले-से हाथ किन्तु बूंदें न टपकती हों आदि)। (५) मट्टिया-सचित्त मिट्टी (मिट्टी का ढेला या कीचड़)। (६) उसं-सचित्त क्षार (खारी या नौनी मिट्टी)।
।
र
आचारांग सूत्र (भाग २)
Acharanga Sutra (Part 2)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org