________________
--------
N
EPARANANDALODARUE DAY
s
First of all that ascetic should carry that food to those . co-religionist and affiliated ascetics and tell-“Long lived
Shramans ! This food is much more than my requirement, therefore please take it.” On hearing this they may say——“Long lived Shraman ! We will certainly eat as much as we can out of it; or if possible we will eat it all."
विवेचनसूत्र ६३ में तेलपुओं के साथ 'माँस' व 'मत्स्य' शब्द का प्रयोग हुआ है उस सम्बन्ध में हमने ‘माँस' शब्द पर उद्देशक १० में विस्तार से चर्चा की है। वृत्तिकार ने यहाँ मत्स्य व माँस शब्द का प्रचलित अर्थ ही लिया है और उसे अपवाद मार्ग में ग्राह्य माना है। किन्तु आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने इस पर समीक्षा करते हुए लिखा है कि-आचारांग पर बालावबोध के लेखक उपाध्याय श्री पार्श्वचन्दसूरि ने वृत्तिकार के मत की आलोचना की है। उनका कहना हैसूत्रकार के समय में कुछ वनस्पतियों के अर्थ में इन शब्दों का प्रयोग होता रहा होगा, किन्तु आज उक्त शब्दों का उस अर्थ में प्रयोग नहीं होता है। अतः इससे उक्त शब्दों का वर्तमान में प्रचलित अर्थ करना उचित नहीं है। गहराई से विचार करने पर उपाध्याय जी का यह मत समीचीन लगता है क्योंकि प्रस्तुत सूत्र में बीमार के लिए उक्त आहार लाने का उल्लेख है और तेल के पुए व मत्स्य माँस बीमार के लिए पथ्यकारक हो नहीं सकते और न ही यह पूर्ण अहिंसक साधु की वृत्ति के अनुकूल ही लगता है। सूत्रकार के समय में इन शब्दों का प्रयोग वनस्पति के अर्थ में ही होता था। (हिन्दी टीका, पृ. ९०१) ___Elaboration-In aphorism 63 the terms 'mansa' (meat) and 'matsya' (fish) have been used. We have discussed in detail about 'mansa' in lesson 10. The commentator (Vritti) has interpreted mansa conventionally and taken it to be acceptable in conditions of emergency. However, refuting this interpretation Acharya Shri Atmaramji M. writes—Upadhyaya Shri Parshvachandra Suri has criticized this view of the commentator (Vritti) in his Balavabodh (a type of commentary) on Acharanga Sutra. He maintains that during the time of writing of this work these terms could have been used for some specific vegetables, but today these words are nowhere used to convey the same meaning. Therefore it is not proper to interpret these words to convey their current meaning. On giving a serious thought the view of Parshvachandra Suri appears to be correct because in this aphorism such food is prescribed for an ailing ascetic. Meat, fish and oily cookies can hardly be defined as food for the sick. Moreover, it does not also आचारांग सूत्र (भाग २)
( १२२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
OVOVACA
OS
.
FA
*
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org