Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 542
________________ भगवान महावीर का जन्म ३४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण राइंदियाणं वीइकंताणं जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चेत्त सुद्धे तस्स णं चेत्त सुद्धस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं समणं भगवं महावीरं अरोया पसूया। ३४८. उस काल और उस समय में त्रिशला क्षत्रियाणी ने अन्य किसी समय नौ मास साढ़े सात अहोरात्र पूर्ण व्यतीत होने पर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के द्वितीय पक्ष में अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर सुखपूर्वक आरोग्ययुक्त (श्रमण भगवान महावीर को) जन्म दिया। BIRTH OF BHAGAVAN MAHAVIR 348. At that time during that period during the first month and the second fortnight of the summer season on the thirteenth day of the bright half of the month of Chaitra sometime after the moon entered its twelfth mansion called Uttaraphalguni Trishala Kshatriyani gave birth conveniently to a healthy son (Shraman Bhagavan Mahavir). * ३४९. जं णं राइं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया तं णं राइं भवणइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिदेवेहिं य देवीहिं य ओवयंतेहिं य उप्पयंतेहिं य संपयंतेहिं य एगे महं दिव्ये देवुज्जोए देवसंनिवाए देवकहक्कहए उप्पिंजलगभूए यावि होत्था। ३४९. जिस रात्रि को त्रिशला क्षत्रियाणी ने सुखपूर्वक (श्रमण भगवान महावीर को) जन्म दिया, उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों और देवियों के स्वर्ग से आने और मेरुपर्वत पर जाने-यों ऊपर-नीचे आवागमन से एक महान् दिव्य देवोद्योत हो गया। देवों के एकत्र होने से लोक में एक हलचल मच गई, देवों के परस्पर ॐ हास-परिहास (कहकहों) के कारण सर्वत्र कलकल नाद व्याप्त हो गया। 349. The night Trishala Kshatriyani gave birth to Shraman Bhagavan Mahavir numerous Bhavanpati, Vanavyantar, Jyotishi and Vaimanik (the names of the four dimensions of gods) gods and goddesses descended from heavens and ascended * आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४८८ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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