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(५) अहावरा पंचमा भावणा-णो णिग्गंथे इत्थी-पसु-पंडगसंसत्ताइं सयणा-ऽऽसणाई के सेवित्तए सिया। केवली बूया-निग्गंथे णं इत्थी-पसु-पंडगसंसत्ताई सयणा-ऽऽसणाई सेवेमाणे संतिभेया जाव भंसेज्जा। णो णिग्गंथे इत्थी-पसु-पंडगसंसत्ताई सयणा-ऽऽसणाई सेवित्तए सिय ति पंचमा भावणा।
एत्तावताव चउत्थे महव्वए सम्मं काएणं जाव आराहिए यावि भवइ। चउत्थं भंते ! महव्वयं।
(५) पंचम भावना का स्वरूप इस प्रकार कहा गया है-निर्ग्रन्थ श्रमण स्त्री, पशु और नपुंसक से युक्त शय्या और आसन आदि का सेवन न करे। केवली भगवान कहते हैं-जो निर्ग्रन्थ स्त्री-पशु-नपुंसक संसक्त शय्या और आसन आदि का सेवन करता है, वह शान्तिरूप चारित्र को नष्ट कर देता है, ब्रह्मचर्य भंग कर देता है और केवली-प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए निर्ग्रन्थ को स्त्री-पशु-नपुंसक संसक्त शय्या और आसन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। यह पंचम भावना है।
इस प्रकार मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत का सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्श करने, उसका पालन करने तथा अन्त तक उसमें अवस्थित रहने पर भगवदाज्ञा के अनुरूप सम्यक् आराधना हो जाती है।
भगवन् ! यह मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत है।
(5) The fifth bhaavana is—A nirgranth should not share his seat or bed with women, animals or eunuchs. The Kevali says—A nirgranth who shares his seat or bed with women, animals or eunuchs disturbs his serene conduct and serene celibacy, and falls from the serene code propagated by the Kevali. Therefore a nirgranth should abstain from sharing his seat or bed with women, animals or eunuchs. This is the fifth bhaavana.
In this way the fourth great vow with its five bhaavanas is properly touched by the body (accepted), observed, accomplished, praised, established and practiced according to the precepts of Bhagavan.
Bhante ! This is the fourth great vow called maithun-viraman or abstaining from sexual intercourse. भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन
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Bhaavana : Fifteenth Chapter
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