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पंचम महाव्रत और उसकी भावनाएँ __ ३९७. अहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं 'सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि। से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा णेव सयं परिग्गहं गेण्हेज्जा, णेवऽण्णेणं परिग्गहं गेण्हावेज्जा, अण्णं वि परिग्गहं गेण्हतं ण समणुजाणेज्जा जाव वोसिरामि।
३९७. हे भगवन् ! मैं पाँचवें महाव्रत को स्वीकार करता हूँ। पंचम महाव्रत में सब प्रकार के परिग्रह का त्याग करता हूँ। अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी प्रकार के परिग्रह को मैं स्वयं ग्रहण नहीं करूँगा, दूसरों से ग्रहण नहीं कराऊँगा और परिग्रह ग्रहण करने वालों का अनुमोदन नहीं करूँगा। (इसके आगे का) 'आत्मा से भूतकाल में परिगृहीत परिग्रह का व्युत्सर्ग करता हूँ' तक का सारा वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। FIFTH GREAT VOW AND ITS BHAAVANAS ___397. Bhante ! After this I accept the fifth great vow. I abstain completely from keeping any possessions. Whether the objects are less or more, minute or gross, living or non-living, I will not keep any possessions; neither will I induce others to do so or approve of others doing so. I will observe this great vow through three means (mind, speech and body) and three methods (doing, inducing and approving). Bhante ! I critically review any such act of keeping possessions that I have done in the past, denounce it (considering soul as my witness), censure it (considering my guru as my witness), and earnestly desist from indulging in it (and expel this sin from my soul). __३९८. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति
(१) तत्थिमा पढमा भावणा-सोयओ णं जीवे मणुन्नामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेइ, मणुनामणुण्णेहिं सद्देहिं णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो गिज्झेज्जा णो मुझेज्जा णो र अज्झोववज्जेज्जा। केवली बूया-निग्गंथे णं मणुनामणुण्णेहिं सद्देहिं सज्जमाणे
रज्जमाणे जाव विणिघायमावज्जमाणे संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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