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उपसंहार
३९९. इच्चेएहिं महव्वएहिं पणवीसाहि य भावणाहिं संपन्ने अणगारे अहासुयं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं कारण फासित्ता पालित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आणाए आराहिता यावि भवति ।
-त्ति बेमि ।
॥ पण्णरसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥
३९९. इन (पूर्वोक्त) पाँच महाव्रतों और उनकी पच्चीस भावनाओं से सम्पन्न अनगार यथाश्रुत, यथाकल्प और यथामार्ग इनका काया से सम्यक् प्रकार से स्पर्श कर, पालन कर, इन्हें पार लगाकर, इनके महत्त्व का कीर्तन करके भगवान की आज्ञा के अनुसार इनका आराधक बन जाता है।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
CONCLUSION
399. An ascetic possessing the aforesaid five great vows and their twenty five bhaavanas in accordance with the scriptures, codes and procedures and properly touching by his body (accepting), observing, accomplishing, praising and establishing, becomes a true seeker according to the precepts of Bhagavan.
__So I say.
निष्कर्ष - प्रस्तुत पन्द्रहवें अध्ययन में सर्वप्रथम प्रभु महावीर की पावन जीवन गाथा संक्षेप में दी गई है। पश्चात् प्रभु महावीर द्वारा उपदिष्ट श्रमण धर्म का स्वरूप बताने वाले पाँच महाव्रत तथा उनकी पच्चीस भावनाओं का वर्णन है।
पाँच महाव्रतों का वर्णन इसी क्रम से दशवैकालिक, अध्ययन में तथा पाँच महाव्रतों की पाँच-पाँच कुल पच्चीस भावनाओं का यह विस्तृत विवेचन प्रश्नव्याकरण संवर द्वार में भी है। यह भावनाएँ पाँच महाव्रतों की विशुद्धि तथा रक्षा के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। यही कारण है कि आगमों में अन्य अनेक स्थानों पर भी इन भावनाओं का उल्लेख किया गया है। जैस-समवायांग सूत्र, समवाय २५ में स्थानांगसूत्र ९ में ब्रह्मचर्य की नवगुप्ति प्रकरण में, उत्तराध्ययन, अध्ययन १६ में तथा आचारांग चूर्णि आवश्यक चूर्णि एवं तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ७ में इन भावनाओं का कुछ नाम-भेद के साथ वर्णन मिलता है।
वृत्तिकार शीलांकाचार्य ने भावनाओं का जो क्रम निर्दिष्ट किया है, वह वर्तमान में हस्तलिखित प्रतियों में उपलब्ध है, किन्तु लगता है आचारांग चूर्णिकार के समक्ष कुछ प्राचीन पाठ-परम्परा रही है, और वह कुछ विस्तृत भी है। चूर्णिकार सम्मत पाठ वर्तमान में आचारांग की प्रतियों में नहीं मिलता, किन्तु आवश्यक चूर्णि में उसके समान बहुलांश पाठ मिलता है।
भावना: पन्द्रहवाँ अध्ययन
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Bhaavana: Fifteenth Chapter
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