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ACCORI-
Elaboration—In these five verses the author has mentioned what an ascetic should do to cleanse his soul of the dirt of karmas with examples like process of purifying silver. The five duties of an ascetic are listed in the following manner---
(1) An ascetic who endures all afflictions like the earth should avoid harming mobile and immobile beings. __ (2) The austerity, wisdom and glory of an ascetic following the ten steps of religion including forgiveness, freedom from desires and absorption in meditation continues to increase like the glow of a flame.
(3) The sun of great vows dispels the darkness of the accumulated karmas and makes the soul a source of light for all the three worlds.
(4) An ascetic should remain away from the householders caught in the trap of karmas, desire for women and attraction for this and the other world.
(5) The dirt of karmas of a bhikshu who is free of all company, is prudent, and can endure misery, is cleansed just like silver is purified by fire.
विशेष शब्दों के अर्थ–'उवेहमाणेउन बाल जनों के प्रति या उन कठोर शब्द-स्पर्शों के प्रति साधु उपेक्षा करता रहे। अंकतदुक्खा-सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय है, बस और स्थावर दोनों प्रकार के संसारवर्ती प्राणी दुःखी हैं, यह जानकर समस्त जीवों की हिंसा न करे। ___ अणंत जिणेण-चूर्णिकार के अनुसार-मनुष्य, तिर्यंच आदि रूप अनन्त संसार है, वह जिसने जीत लिया, वह अनन्तजित होता है। ___ 'महागुरु निस्सयरा उदीरिया'-चूर्णिकार के अनुसार-महाव्रत बड़ी कठिनता से ग्रहण किये जाते हैं तथा गुरुतम-भारी होने के कारण ये महागुरु कहलाते हैं। निस्सयरा का अर्थ है-णिस्सा करेंति खवंति-तीक्ष्ण करके क्षय करते हैं। जैसे सूर्य तीनों दिशाओं के अन्धकार को मिटाकर । प्रकाश कर देता है, वैसे ही महाव्रत त्रिजगत् के कर्मरूप अन्धकार को मिटाकर आत्म-ज्ञान का प्रकाश कर देता है। ___'असज्जमित्थीसु चएज्ज पूयणं'-स्त्रियों में असक्त रहे और पूजा-सत्कार की आकांक्षा छोड़े।
प्रथम में मूलगुण की तथा दूसरे में उत्तरगुण की सुरक्षा का प्रतिपादन है। . विमुक्ति : सोलहवाँ अध्ययन
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Vimukti: Sixteenth Chapter
CARPOSES!
NERALAMOROR ' OMMMMMMAD
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