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चित्र परिचय १७
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भुजंग की तरह संग - मुक्त
(१) जिस प्रकार भुजंग (सर्प) अपनी जीर्ण त्वचा (काँचुली) का त्याग करके उससे मुक्त होकर स्वतंत्र विचरता है, वापस उसे स्वीकार नहीं करता; उसी प्रकार इहलोक - परलोक सम्बन्धी आशंसा का त्यागकर भिक्षु नरक एवं तिर्यंच गति सम्बन्धी दुःख शय्या (दुःखों) से मुक्त होकर विचरता है।
Illustration No. 17
भव-समुद्र से पारगामी
(२) जिस प्रकार अथाह जल वाले समुद्र को भुजाओं से पार करना कठिन है; वैसे ही इस संसाररूपी महासमुद्र को पार करना बड़ा दुष्कर है। जो मुनि इस संसार का स्वरूप पहचानकर उसका (तृष्णा का) त्याग कर देता है, वह भव समुद्र के पार पहुँच जाता है।
- अध्ययन १६, सूत्र ४०९-४१०
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- अध्ययन १६, सूत्र ४०८
FREE OF ATTACHMENTS LIKE A SERPENT (1) As a serpent abandons its old skin and not taking it back moves free, likewise an ascetic abandons desires for this world and the other, gets liberated from the bed of miseries of births in hell or as an animal and moves free.
-Chapter 16, aphorism 408
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CROSSING THE OCEAN OF REBIRTHS
(2) As it is difficult to cross an ocean bare handed, likewise it is extremely difficult to cross this ocean of mundane existence. An ascetic who becomes aware of the true form of this mundane world and renounces any desire for it crosses the ocean of _rebirths.
-Chapter 16, aphorism 409-410
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