Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 618
________________ | चित्र परिचय १६ । Illustration No. 16 परीषह में अकम्प (१) पर्वत की तरह अकम्प-जिस भिक्षु का मन भावनाओं से अच्छी प्रकार भावित होकर समभावों में स्थिर रहता है वह अनार्य असभ्य जनों द्वारा कहे गये कठोर वचनों तथा विविध प्रकार की पीड़ाओं में उसी प्रकार स्थिर व अकम्पित रहता है जैसे वायु के प्रबल वेग से पर्वत कभी कम्पायमान नहीं होता। -अध्ययन १६, सूत्र ३९९-४०० कर्ममल-शुद्धि (२) तप अग्नि है : रजत की तरह शुद्ध आत्मा-जो भिक्षु क्षमा आदि उत्तम धर्मों में प्रवृत्त रहता है। तृष्णा से मुक्त और धर्मध्यान में समाहित रहता है उसके तप, प्रज्ञा और यश का तेज अग्निशिखा के तेज की भाँति निरन्तर बढ़ता ही जाता है और जिस प्रकार अग्नि में तपकर विविध रसायनों द्वारा चाँदी का मल दूर होने पर वह मलरहित होकर शुद्ध हो जाती है उसी प्रकार कर्ममलों से मुक्त होकर सर्वकर्म विमुक्त आत्मा विशुद्ध-निर्मल हो जाता है। -अध्ययन १६, सूत्र ४०२, ४०५ UNMOVED BY AFFLICTIONS (1) As a mountain remains unmoved by tremendous force of winds, likewise an ascetic who, highly inspired by these bhaavanas, is stable in equanimity remains serene and unmoved enduring angry words and various afflictions caused by rustic and uncivilized people. -Chapter 16, aphorism 399-400 CLEANSING THE DIRT OF KARMAS (2) Austerities are fire : Soul pure as silver-An ascetic following the pious codes like forgiveness, free of desires and absorbed in pious meditation continues to increase his austerity, wisdom and glory like the glow of a flame. As silver becomes pure by burning in fire and removing its impurities, likewise removing the dirt of karmas a soul gets liberated of all karmas and becomes pure and sublime. -Chapter 16, aphorism 402, 405 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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