Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 552
________________ R ... . .. .SATA A .-: .. .......- . . . . . . destined death when their life-span came to an end their souls left the mortal bodies and reincarnated as gods in the Achyutakalpa or the twelfth dimension of gods. At the end of their divine life-span, genus and state they will reincarnate in Mahavideh area (as human beings) and will attain ultimate purity (siddha state), wisdom (buddha), liberation (mukta) and salvation (parinivritta) by ending all their sorrows when they breath their last. PAQoYANCHAR ANATAKAkhAO00940 REPRODAMADORE.RAMERIES दीक्षा ग्रहण का संकल्प ३५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समण भगवं महावीरे नाए नायपुत्ते नायकुलविणिव्वए विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले।। तीसं वासाई विदेहंसित्ति कटू अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहिं देवलोगमणुप्पत्तेहिं समत्तपइन्ने चेच्चा हिरण्णं, चेच्चा सुवण्णं, चेच्चा बलं, चेच्चा वाहणं, चेच्चा धण-कणग-रयण-संतसारसावइज्जं, विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता, विस्साणित्ता, दायारेसु णं दायं पज्जाभाइत्ता, संवच्छरं दलइत्ता, जे से हेमंताणं पढमे मासे, पढमे क पक्खे मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अभिनिक्खमणाभिप्पाए यावि होत्था। ३५८. उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर, जोकि ज्ञातपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे, ज्ञातकुल (के उत्तरदायित्व) से विनिवृत्त (मुक्त) थे, अथवा ज्ञातकुल में चन्द्रमा के समान थे, (विदेह) देहासक्तिरहित थे, विदेह जनों द्वारा अर्चनीय-पूजनीय थे, विदेहदत्ता (त्रिशला माता) के पुत्र थे, विशिष्ट शरीर-वज्रऋषभ-नाराच-संहनन एवं समचतुरन संस्थान से युक्त होते हुए भी शरीर से सुकुमार थे। भगवान ने तीस वर्ष तक विदेहभावपूर्वक गृह में निवास किया फिर माता-पिता को आयुष्य पूर्ण करके देवलोक को प्राप्त जाने पर अपनी (गर्भकाल में) ली हुई प्रतिज्ञा के पूर्ण हो जाने पर हिरण्य, स्वर्ण, सेना (बल), वाहन (सवारी), धन, धान्य, रत्न आदि सारभूत, सत्वयुक्त पदार्थों का त्याग करके, याचकों को यथेष्ट दान देकर, अपने द्वारा दानशाला पर नियुक्त जनों के समक्ष सारा धन खुला करके, उसे दान रूप में देने का विचार प्रगट करके, अपने सम्बन्धियों में सम्पूर्ण पदार्थों का यथा योग्य (दाय) बँटवारा करके, संवत्सर (वर्षी) दान देकर (निश्चिन्त हो चुके तब) हेमन्त ऋतु के प्रथम मास एवं आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४९८ ) Acharanga Sutra (Part 2) SOCCOD DAN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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