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(thought) that is filled with sins, sinful thoughts, sinful actions; that has an inflow of karmas, that pierces and penetrates, that produces friction and aversion, that disturbs the prans (lifeforces) of beings and destroys beings. Only he is a nirgranth who knows his mind well and keeps it away from sinful thoughts. One whose mind is free of sins (is a nirgranth). This is the second bhaavana.
(३) अहावरा तच्चा भावणा-वइं परिजाणइ से णिग्गंथे, जा य वई पाविया सावज्जा सकिरिया जाव भूओवघाइया तहप्पगारं वइं णो उच्चारेज्जा। जे वइं परिजाणइ से णिग्गंथे जा य वइ अपाविय त्ति तच्चा भावणा।
(३) इसके पश्चात् तृतीय भावना इस प्रकार है-जो साधक वचन का स्वरूप भलीभाँति जानकर दोषयुक्त वचनों का परित्याग करता है, वह निर्ग्रन्थ है। जो वचन पापकारी, सावध, क्रियाओं से युक्त, कर्मों का आनवजनक, छेदन-भेदनकर्ता, क्लेश-द्वेषकारी है, परितापकारी है, प्राणियों के प्राणों का अतिपात करने वाला और जीवों का उपघात करने वाला है; साधु इस प्रकार के वचन का उच्चारण न करे। जो वाणी के दोषों को भलीभाँति जानकर सदोष वाणी का परित्याग करता है, वही निर्ग्रन्थ है। उसकी वाणी पापदोषरहित हो, यह तृतीय भावना है।
(3) The third bhaavana is-A nirgranth knows well the form of sound or word and avoids faulty speech. A nirgranth should not use words (speech) that cause sin, are sinful, have sinful actions; that have an inflow of karmas, that pierce and penetrate, that produce friction and aversion, that disturb the prans (life-forces) of beings and destroy beings. Only he is a nirgranth who knows the faults of speech well and avoids faulty speech. One whose speech is free of faults (is a nirgranth). This is the third bhaavana.
(४) अहावरा चउत्था भावणा-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो अणादाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए। केवली बूया-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए से णिग्गंथे पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज वा। तम्हा आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए त्ति चउत्था भावणा।
आचारांग सूत्र (भाग २)
( ५२८ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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