Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 592
________________ (3) The third bhaavana is-A nirgranth knows about the bitter consequences of greed and avoids it. The Kevali saysWhen greedy, a person thoughtlessly tells a lie under the influence of greed. Only he is a nirgranth who is free of greed, not the one who is greedy. This is the third bhaavana. sh (४) अहावरा चउत्था भावणा - भयं परिजाणइ से निग्गंथे, णो य भयभीरुए सिया । केवल बूया-भयपत्ते भीरु समावइज्जा मोसं वयणाए । भयं परिजाणइ से निग्गंथे, णो य भयभीरुए सिया, चउत्था भावणा । (४) चौथी भावना यह है - जो साधक भय को जानकर उसका परित्याग कर देता है, वह निर्ग्रन्थ है। साधक को भयभीत नहीं होना चाहिए । केवली भगवान का कथन हैभयग्रस्त भीरु व्यक्ति भयाविष्ट होकर असत्य बोल देता है। अतः जो साधक भय का परित्याग करता है, वही निर्ग्रन्थ है, यह चौथी भावना है। (4) The fourth bhaavana is-A nirgranth knows about the bitter consequences of fear and avoids it. The Kevali says-When afraid, a person thoughtlessly tells a lie under the influence of fear. Only he is a nirgranth who is free of fear, not the one who is afraid. This is the fourth bhaavana. (५) अहावरा पंचमा भावणा -हासं परिजाणइ से निग्गंथे, णो य हासणए सिया । केवली बूया -हासपत्ते हासी समावएज्जा मोसं वयणाए । हासं परिजाणइ से णिग्गंथे, जो य हासणाए सियत्ति पंचमा भावणा । एतावता दोच्चे महव्वए सम्मं कारणं फासिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ । दोच्चं भंते ! महव्वयं मुसावायाओ वेरमणं । (५) पाँचवीं भावना यह है - जो साधक हास्य के अनिष्ट परिणामों को जानकर उसका परित्याग कर देता है, वह निर्ग्रन्थ है। अतएव निर्ग्रन्थ हँसी-मजाक करने वाला न हो। केवली भगवान का कथन है- हास्यवश व्यक्ति असत्य भी बोल देता है। इसलिए जो मुनि हास्य का त्याग कर देता है, वह निर्ग्रन्थ है, यह पाँचवीं भावना है। इस प्रकार मृषावाद - विरमणरूप द्वितीय सत्य महाव्रत का काया से सम्यक् स्पर्श (आचरण) करने, उसका पालन करने, गृहीत महाव्रत को भलीभाँति पार लगाने, उसका आचारांग सूत्र (भाग २) ( ५३४ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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