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अनुरूप चिन्तन करके विवेकपूर्वक बोलने वाला साधक ही निर्ग्रन्थ कहला सकता है, बिना विचार किये बोलने वाला नहीं। यह प्रथम भावना है।
392. The five bhaavanas (attitudes) of that second vow are as follows
(1) The first bhaavana is—A nirgranth speaks after right contemplation and not without it. The Kevali says—a nirgranth speaking without right contemplation commits fault of telling a lie. Therefore a nirgranth is one who speaks prudently after right contemplation on the subject under reference and not the one who speaks without thinking. This is the first bhaavana.
(२) अहावरा दोच्चा भावणा-कोहं परिजाणइ से निग्गंथे, णो कोहणे सिया। केवली बूया-कोहपत्ते कोही समावइज्जा मोसं वयणाए। कोहं परिजाणइ से निग्गंथे, णो य कोहणाए सि य त्ति दोच्चा भावणा।
(२) इसके पश्चात् दूसरी भावना इस प्रकार है-क्रोध का कटु परिणाम जानकर उसका परित्याग कर देता है, वह निर्ग्रन्थ है। केवली भगवान कहते हैं-क्रोध आने पर __क्रोधी व्यक्ति आवेशवश असत्य वचन का प्रयोग कर देता है। अतः जो साधक क्रोध का
परित्याग कर देता है, वही निर्ग्रन्थ कहला सकता है, क्रोधी नहीं। यह द्वितीय भावना है। ___ (2) The second bhaavana is A nirgranth knows about the bitter consequences of anger and avoids it. The Kevali saysWhen angry, a person thoughtlessly tells a lie out of excitement. Only he is a nirgranth who is free of anger, not the one who is angry. This is the second bhaavana.
(३) अहावरा तच्चा भावणा-लोभं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य लोभणए सिया। केवली बूया-लोभपत्ते लोभी समावएज्जा मोसं वयणाए। लोभं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य लोभणाए सि य त्ति तच्चा भावणा।
(३) तृतीय भावना यह है-जो लोभ का दुष्परिणाम जानकर उसका परित्याग कर देता : है, वह निर्ग्रन्थ है, साधु लोभग्रस्त न हो। केवली भगवान का कथन है कि लोभग्रस्त व्यक्ति लोभावेशवश असत्य बोल देता है। अतः जो साधक लोभ का परित्याग कर देता है, वही निर्ग्रन्थ है, यह तीसरी भावना है। भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन
Bhaavana : Fifteenth Chapter
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