Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 551
________________ पायच्छित्ताइं पडिवज्जित्ता कुससंथारं दुरूहित्ता भत्तं पच्चक्खायंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीरसंलेहणाए झूसियसरीरा कालमासेणं कालं किच्चा तं सरीर विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ना। ___ तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए (ता) चइत्ता महाविदेहे वासे चरिमेणं उस्सासेणं सिन्झिस्संति, बुज्झिस्संति, मुच्चिस्संति, परिणिव्याइस्संति, सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति। ३५७. श्रमण भगवान महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी श्रावक धर्म का पालन करने वाले श्रमणोपासक थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक-धर्म का पालन किया। (अन्तिम समय में) षड्जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्म-निन्दा (पश्चात्ताप), आत्म-गर्दा एवं लगे दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार करके, कुश के संस्तारक पर आरूढ़ होकर भक्तप्रत्याख्यान नामक अनशन (संथारा) स्वीकार किया। चारों प्रकार के आहार-पानी का त्याग करके अन्तिम मारणान्तिक संलेखना से शरीर को कृश कर दिया। फिर कालधर्म का अवसर आने पर आयुष्यपूर्ण करके उस शरीर को छोड़कर अच्युतकल्प नामक (बारहवें) देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से देव-सम्बन्धी आयु, भव (जन्म) और स्थिति का क्षय होने पर वहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में (मनुष्य शरीर धारण करके) चरम श्वासोच्छ्वास द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिवृत्त होंगे और वे सब दुःखों का अन्त करेंगे। 357. The parents of Shraman Bhagavan Mahavir were devotees of Bhagavan Parshvanath and shramanopasaks (those who worship Shramans) following the shravak dharma (conduct of a lay Jain). They observed the shravak conduct for many years. (When their end approached) they resolved to observe the ultimate vow of Bhaktapratyakhyan (a kind of fasting) after performing perquisites including self-criticism directed at care of six life-forms; repenting, self-reproach, critical review of faults committed, accepting suitable atonement for drawbacks in basic and auxiliary virtues; and lying or sitting on a bed made of hay. Observing the ultimate vow they abandoned all the four types of foods and drinks and emaciated their bodies. At the time of भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन ( ४९७ ) Bhaavana : Fifteenth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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