Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 556
________________ ये ९ भेद होते हैं। तत्त्वार्थ भाष्यकार ने ८ भेद ही बताये हैं। लोकान्तवर्ती ये ८ भेद ही होते हैं, जिन्हें आचार्य श्री आत्माराम जी म ने बताये हैं, नौवाँ भेद रिष्ट विमान प्रस्तारवर्ती होने से होता है। इसलिए कहीं ८ और कहीं ९ भेद बताये हैं। अन्य आगमों में ९ भेद ही बताए गये हैं । यहाँ जो ८ भेद बताए हैं, वे भी इसी अपेक्षा से समझना चाहिए। आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने नव कृष्ण राजियों का उल्लेख करके बताया है कि इनके मध्य में रहने वाले नव लोकान्तिक देव हैं। कुछ आचार्यों का मत है कि लोक के अन्त में रहने के कारण इन्हें लोकान्तिक कहा जाता है। ये एक भव करके लोक-संसार का अन्त करके मोक्ष जाते हैं, इसलिए भी इन्हें लोकान्तिक देव कहा जाता है। भगवान स्वयं तीन ज्ञान के धारक होते हैं और अपना दीक्षाकाल स्वयं जानते हैं, किन्तु फिर भी ये देव केवल अपनी परम्परा का पालन करने हेतु उनके दीक्षाभिप्राय को जानकर सेवा में उपस्थित होकर प्रार्थना करते हैं- “बुज्झाहि भगवं लोगनाहा ! पवत्तेहि धम्मतित्थं हिय-सुह निस्सेयकरं । ” ( कल्पसूत्र ) “भगवन् ! लोकनाथ ! प्रतिबुद्ध हो, जगत् के हित-सुख - निःश्रेयस् के लिए धर्म-तीर्थना प्रवर्तन करो। " Elaboration-According to Tattvartha Sutra ( 4 / 25 ) also the Lokantik gods reside in Brahmalok and not in other dimensions of gods. Eight kinds of Lokantik gods live around Brahmalok in all eight cardinal directions. The names of the eight Lokantik gods listed in Tattvartha Sutra are – ( 1 ) Sarasvat, (2) Aditya, ( 3 ) Vanhyaruna, (4) Gardatoya, (5) Tushita, (6) Avyabadh, (7) Marut, and (8) Arishta. If Vanhi and Aruna (of Vanhyaruna) are considered separate the total will become nine. There are eight Krishna Rajis (in a formation of concentric circles). These gods reside between every two rajis. In the middle reside the Arisht gods. This way there kinds become nine. In the Bhashya of Tattvartha Sutra only eight kinds are mentioned. According to Acharya Shri Atmaramji M. the Lokantvarti (residing at the end of an area) kinds are only eight, the ninth or Arishta dwell in the middle. Thus we find eight kinds of these gods at some place and nine at another. In other Agams nine kinds are mentioned. The eight kinds mentioned here should be taken in light of aforesaid explanation. Acharya Shri Atmaramji M. has mentioned nine Krishna rajis and nine Lokantik gods residing in between them. Some acharyas are of the opinion that they live at the end of the Lok (the world of the living) आचारांग सूत्र (भाग २) ( ५०२ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International क For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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