Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 582
________________ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया है, भगवान ने पहले देवों को तत्पश्चात् मनुष्यों को धर्मोपदेश दिया । स्थानांगसूत्र (90) में बताया है भगवान की प्रथम प्रवचन सभा में केवल देव ही उपस्थित थे। उस समय कोई मानव वहाँ उपस्थित नहीं था। देवता धर्मदेशना सुनकर त्याग, व्रत नियम आदि स्वीकार नहीं कर सके, इसलिए व्रत स्वीकार करने की दृष्टि से प्रथम प्रवचन निष्फल रहा। इसलिए इसे आश्चर्य (अच्छेरा) माना है। फिर दूसरे दिन पावापुरी में प्रथम समवसरण की रचना हुई जिसमें मनुष्यों को उपदेश दिया । ( हिन्दी टीका, पृ. १४१६) Elaboration-This aphorism informs that Bhagavan gave his sermon first to the gods and then to the humans. Sthananga Sutra informs that in the first discourse of Bhagavan only gods were present. At that time no human being was present there. On listening to the sermon the gods could not accept the codes of renouncing, vows etc. Thus from the angle of accepting vows the first discourse was a failure. That is the reason this incident is considered unusual or a miracle. After that, on the second day the first divine pavilion was created where he gave his sermon to human beings. (Hindi Tika, p. 1416) पंचमहाव्रत एवं षड्जीव निकाय की प्ररूपणा ३८८. तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्नणाण - दंसणधरे गोयमाईणं समणाणं णिग्गंथाणं पंच महव्वयाई सभावणाई छज्जीवणिकायाई आइक्खइ भासइ परूवेइ, तं - पुढवीकाए जाव तसकाए । जहा - ३८८. तत्पश्चात् केवलज्ञान - केवलदर्शन को धारण करने वाले श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि श्रमण-निर्ग्रन्थों को (लक्ष्य करके) भावना सहित पंच महाव्रतों और पृथ्वीका से लेकर काय तक षड्जीवनिकायों के स्वरूप का प्रवचन - प्ररूपण किया। FIVE GREAT VOWS AND SIX LIFE-FORMS 388. After that, endowed with perfect knowledge and perception, Shraman Bhagavan Mahavir propagated and taught Gautam and other Shramans five great vows with bhaavanas and six life-forms from earth-bodied beings to mobilebodied beings. आचारांग सूत्र (भाग २) Jain Education International ( ५२४ ) For Private Personal Use Only Acharanga Sutra (Part 2) 100% 風味 www.jainelibrary.org

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