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therefore they are called Lokantik gods. Another interpretation of the term is that after reincarnating just once they end their cycles of rebirth in the Lok and get liberated, thus they are called Lokantik gods.
Bhagavan himself is endowed with three types of knowledge and is aware of his time of initiation. But still, knowing about his intention of initiation, these gods come to perform their traditional duty and request-"Bhagavan ! Lord of the Lok ! Get enlightened and establish the religious ford for the benefit, happiness and well being of the world.” (Kalpasutra)
अभिनिष्क्रमण महोत्सव के लिए देवों का आगमन ___ ३६५. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिनिक्खमणाभिप्पायं जाणित्ता भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहिं २ रूवेहिं, सएहिं २ णेवत्थेहिं, सएहिं २ चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुइए सव्वबलसमुदएणं सयाई २ जाणविमाणाई दुरूहति। सयाइं २ जाणविमाणाइं दुरूहित्ता अहाबायराइं पोग्गलाई परिसाउँति। अहाबायराइं पोग्गलाई परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति। अहासुहुमाइं पोग्गलाई परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति। उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगतीए अहेणं ओवयमाणा २ तिरिएणं , असंखेज्जाइं दीव समुद्दाई वीतिक्कममाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसे तेणेव उवागच्छंति तेणेव उवागच्छित्ता , जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुरसंणिवेसस्स उत्तरपुरथिमे दिसाभागे तेणेव झत्ति वेगेण ओवइया।
३६५. उसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने-अपने रूप में, अपने-अपने वस्त्रों में और अपने-अपने चिन्हों से युक्त होकर तथा अपनी-अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल-समुदाय सहित अपने-अपने यान-विमानों पर चढ़ते हैं। फिर सब अपने-अपने यान-विमानों में बैठकर जो बादर (स्थूल) पुद्गल हैं, उन्हें पृथक् करते हैं। बादर पुद्गलों को पृथक् करके सूक्ष्म पुद्गलों को चारों ओर से ग्रहण करके वे ऊँचे उड़ते र हैं। ऊँचे उड़कर अपनी उस उत्कृष्ट, शीघ्र, चपल, त्वरित और दिव्य देवगति से नीचे उतरते-उतरते क्रमशः तिर्यक् लोक में स्थित असंख्यात द्वीप-समुद्रों को लाँघते हुए जहाँ । जम्बूद्वीप नामक द्वीप है, वहाँ आते हैं। वहाँ आकर जहाँ उत्तरक्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश है, .
भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन
Bhaavana : Fifteenth Chapter
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