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stay and way of wandering and with unprecedented discipline, equipment, samvar (blocking the inflow of karmas), austerities, brahmacharya (exclusive indulgence with the self), forgiveness, freedom from greed, contentment ( happiness), self-regulation, self-restraint, kayotsarga etc.
३८३. एवं विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुप्पज्जंति दिव्वा वा माणुस्सा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमण - वयण - कायगुत्ते सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति ।
३८३ . इस प्रकार विहार करते हुए श्रमण भगवान महावीर को देव-सम्बन्धी, मनुष्यसम्बन्धी और तिर्यंच- सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग उत्पन्न होते, उन सब उपसर्गों के आने पर उन्हें अकलुषित, अव्यथित, दीनतारहित एवं मन-वचन काया की त्रिविध प्रकार की गुप्तियों से गुप्त होकर सम्यक् प्रकार से समभावपूर्वक सहन करते । उपसर्ग देने वाले को क्षमा करते, सहिष्णुभाव धारण करते तथा शान्ति और धैर्य से झेलते थे ।
383. Wandering thus Shraman Bhagavan Mahavir endured all afflictions caused by gods, humans or animals he faced, with perfection and equanimity, remaining unblemished and undisturbed, without dejection and exercising threefold restraint of mind, speech and body. He forgave the perpetrators of these afflictions and endured these with tolerance, serenity and patience.
भगवान को केवलज्ञान की प्राप्ति
३८४. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स बारस वासा वीइक्कंता, तेरसमंस्स वा वासस्स परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे उत्थे पक्खे साहसुद्धे तस्स णं वेसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पाईणगामिणीए छायाए वियत्ताए पोरुसी भियगामस्स नगरस्स बहिया नइए उज्जुवालियाए उत्तरे कूले सामागस्स गाहावइस्स कट्टकरणंसि वियावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे सालरुक्खस्स अदूरसामंते उक्कुडुयस्स गोदोहियाए आयावणाए आयावेमाणस्स छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं उड्ढं जाणुं अहोसिरस्स धम्मज्झाणोवगयस्स झाणकोट्टेवगयस्स सुक्कज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स
आचारांग सूत्र (भाग २)
Acharanga Sutra (Part 2)
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