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of soul) and having observed a two day fast sat in that excellent palanquin. (10) ३७१. सीहासणे णिविट्ठो सक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं।
वीयंति चामराहिं मणि-रयणविचित्तदंडाहिं॥११॥ ३७१. जब भगवान सिंहासन (शिविका) पर आरूढ़ हुए तब शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र उसके दोनों ओर खड़े होकर मणि-रत्नादि से चित्र-विचित्र हत्थे-डण्डे वाले चामर भगवान पर झुलाने लगे॥११॥
371. When Bhagavan rode the palanquin, Shakrendra and Ishanendra stood on his flanks and started swinging chamars (whisks) having gem studded beautiful handles. (11)
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प्रव्रज्यार्थ प्रस्थान ३७२. पुव्विं उक्खित्ता माणुसेहिं साहट्ठरोमकूवेहि।
पच्छा वहति देवा सुर-असुरा गरुल-णागिंदा ॥१२॥ ३७२. सबसे पहले मनुष्यों ने हर्ष एवं उल्लासपूर्वक वह शिविका उठाई, तत्पश्चात सुर, असुर, गरुड़ और नागेन्द्र आदि देव उसे उठाकर ले चलने लगे॥१२॥ DEPARTURE FOR INITIATION
372. First of all human beings lifted the palanquin with happiness and joy. After that gods, demons and other gods including Garuds and Naagendras lifted and carried the palanquin. (12) ३७३. पुरतो सुरा वहंती असुरा पुण दाहिणम्मि पासम्मि।
अवरे वहति गरुला णागा पुण उत्तरे पासे ॥१३॥ ३७३. उस शिविका को पूर्व दिशा की ओर से सुर (वैमानिक देव) उठाकर चलते हैं, ... असुर दक्षिण दिशा की ओर से, गरुड़ देव पश्चिम दिशा की ओर से और नागकुमार देव उत्तर दिशा की ओर से उठाते हैं॥१३॥
373. That palanquin is carried by gods holding its eastern * end, demons holding the southern end, Garuds holding .... भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन
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Bhaavana : Fifteenth Chapter
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