Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 547
________________ Dhatri or lap-nurse-maid (one who took charge of keeping the baby in her lap. Thus climbing into the lap of one or the other (of these maids and playing) on a beautiful gem inlaid floor prince Vardhaman grew happily as a Champa tree grows undisturbed by the blowing winds in a mountain cave. यौवन एवं पाणिग्रहण ३५४. तओ णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणयए विणियत्तबालभावे अप्पुस्सुयाइं उरालाइं माणुस्सगाइं पंचलक्खणाइं कामभोगाइं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई परियारेमाणे एवं चाए विहरइ। ___३५४. उसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ज्ञान-विज्ञान से युक्त होकर बाल्यावस्था को पार कर युवावस्था को प्राप्त हुए। वे मनुष्य-सम्बन्धी उदार शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से युक्त पाँच प्रकार के कामभोगों का उदासीनभाव से उपभोग करते हुए त्यागभावपूर्वक विचरण करने लगे। YOUTH AND MARRIAGE 354. In due course Shraman Bhagavan Mahavir acquired normal and special knowledge and from childhood emerged into youth. He commenced leading a detached life indulging with indifference in the five essential human activities related to (sense organs of) sound, form, taste, smell and touch. ३५५. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं, तस्स णं इमे तिन्नि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा-अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे, सहसम्मुइ समणे, भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परीसहे सहति त्ति कटु देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे।। ३५५. काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान महावीर के ये तीन नाम इस प्रकार कहे गये हैं(१) माता-पिता का दिया हुआ नाम-वर्द्धमान, (२) स्वाभाविक समभाव में स्थित होने के कारण श्रमण, और (३) किसी प्रकार का भयंकर भय-भैरव उत्पन्न होने पर भी अविचल रहने तथा अचेलक रहकर विभिन्न परीषहों को समभावपूर्वक सहने के कारण देवों ने उनका नाम रखा-'श्रमण भगवान महावीर'। ____355. Shraman Bhagavan Mahavir belonged to the Kashyap gotra (clan). It is said that he was known by three names. His भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन ( ४९३ ) Bhaavana : Fifteenth Chapter ARTANOTATOVATOPAROSAROPAROSARODRODR.DR.B.Devel * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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