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"Long lived Shraman ! Give these clothes, pots, blankets and ascetic-brooms to us or put these on the ground.” At this the ascetic should not give his equipment to the bandits. Instead, he should place them on the ground. He should refrain from praising, joining his palms and requesting the bandits to get back his equipment. If he wants to get them back he should first show them the religious path, otherwise remain silent.
१७९. ते णं आमोसगा सयं करणिज्जं ति कटु अक्कोसेंति वा जाव उद्दवेंति वा वत्थं वा ४ अच्छिंदेज्ज वा जाव परिद्ववेज्ज वा, तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो गाहावइ ! एए खलु
आमोसगा उवकरण-वडियाए सयं करणिज्जं ति कटु अक्कोसंति वा जाव परिहवेंति ॐ वा। एयप्पगारं मणं वा वई वा णो पुरओ कटु विहरेज्जा। अप्पुस्सुए जाव समाहीए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं सदा जएज्जासि। -त्ति बेमि।
॥ तइओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥
॥ तइयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ १७९. तब वे चोर यदि अपना काम जो करना चाहते हों, उस अनुसार साधु को अपशब्द कहें, मारें-पीटें अथवा उसका वध करने का प्रयत्न करें और उसके वस्त्रादि को फाड़ डालें, तोड़-फोड़कर दूर फेंक दें, तो भी वह भिक्षु ग्राम में जाकर लोगों से उस बात की शिकायत न करे, न ही राजा के आगे फरियाद करे, न ही किसी गृहस्थ के पास जाकर कहे कि “आयुष्मन् गृहस्थ ! इन चोरों ने हमारे उपकरण छीनने के लिए हमें मारा-पीटा है, हमारे उपकरणादि नष्ट करके दूर फेंक दिये हैं।" ऐसे विचारों को साधु मन में भी न लाए और न वचन से भी व्यक्त करे। किन्तु राग-द्वेषरहित होकर समाधिभाव में विचरण करे।
यही उस साधु-साध्वी के भिक्षु जीवन की समग्रता-सर्वांगपूर्णता है। -ऐसा मैं कहता हूँ।
179. If the bandits, as is normal for them, abuse and manhandle the ascetic or try to kill him or tear apart his dress आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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