Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 536
________________ ... ..... .. .. ........ .... .. .... . . . HOROQY 3.0 free of attachment and aversion is called samanas. One who always thinks of noble altruism is also called samanas or sumanas. Bhagavan means one who has the six excellent attributes namely grandeur, beauty, religion, fame, glory and endeavour. Acharya Shri Atmaramji M. has given fourteen meanings of this word. Mahavir-he was called Mahavir because he was extremely brave (accomplished) in context of fame and virtues. As he had won over enemies like passions he was called Mahavikrant. As he endured grave and extreme afflictions including fear and nudity, gods gave him the name Mahavir. ३४६. समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए वीइकंताए, सुसमाए समाए वीइकंताए, सुसम-दुसमाए समाए वीइकंताए, दुसम-सुसमाए समाए बहुवीइकंताए, पण्णत्तरीए वासेहिं मासेहिं य अद्ध नवमसेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स छठ्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महाविजयसिद्धत्थ-पुप्फुत्तरवरपुंडरीय-दिसा-सोवत्थियवद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए, चइत्ता इह खलु जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुरसंणिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायणसगोत्ताए सीहब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिंसि गब्भं वकंते। समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्ता, चइस्सामि त्ति जाणइ, चुए मि त्ति जाणइ, चयमाणे ण जाणइ, सुहुमे णं से काले पण्णत्ते। ३४६. इस अवसर्पिणी काल के सुषम-सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम-दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम-सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष और साढ़े आठ माह शेष रह गये थे, तब श्रमण भगवान महावीर ने ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवें पक्ष, आषाढ़ शुक्ला छठ की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर महाविजयसिद्धार्थ, पुष्पोत्तरवर पुण्डरीक, दिक्स्वस्तिक, वर्द्धमान महाविमान से बीस सागरोपम की आयु पूर्ण करके, देवायु, देवभव और देवस्थिति को समाप्त करके वहाँ से च्यवन किया। च्यवन करके इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष के दक्षिणार्द्ध भरत के दक्षिण-ब्राह्मणकुण्डपुर सन्निवेश में कुडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालंधर गोत्रीया देवानन्दा नाम की ब्राह्मणी की कुक्षि में सिंह की तरह गर्भ में अवतरित हुए। आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४८२ ) Acharanga Sutra (Part 2) ॐ * p.. . doose AM........." 1.MAM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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