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days. When he returns the cloth, it will become his because of having been used. If some ascetic borrows a cloth with this intent he is committing deceit. Therefore an ascetic should not do so. This holds true for many ascetics as well. __२३९. से भिक्खू वा २ णो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करेज्जा, विवण्णाइं णो वण्णमंताई करेज्जा, अण्णं वा वत्थं लभिस्सामि ति कटु णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्चं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थपरिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वएज्जाआउसंतो समणा ! अभिकंखसि वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ? थिरं वा णं संतं णो पलिछिंदिय २ परिवेज्जा, जहा मेयं वत्थं पावगं परो मण्णइ।
परं च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स णियाणाय णो तेसिं भीओ, उम्मग्गेणं गच्छेज्जा जाव अप्पुस्सुए जाव ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
२३९. संयमशील साधु-साध्वी वर्ण वाले सुन्दर वस्त्रों को विवर्ण (असुन्दर) न करे, तथा विवर्ण (असुन्दर) वस्त्रों को सुन्दर वर्णयुक्त न करे। तथा मुझे दूसरा नया (सुन्दर) वस्त्र मिल जायेगा, यह विचार कर अपना पुराना वस्त्र किसी दूसरे साधु को न दे और न किसी से उधार वस्त्र ले, और न ही वस्त्र की परस्पर अदला-बदली करे। तथा अन्य दूसरे साधु के पास जाकर ऐसा न कहे-“आयुष्मन् श्रमण ! तुम मेरे वस्त्र को ग्रहण कर लो मेरे इस वस्त्र को दूसरे गृहस्थ अच्छा (मनोज्ञ) नहीं समझते।" उस सुदृढ़ वस्त्र को टुकड़े-टुकड़े करके फेंके भी नहीं। ___मार्ग में यदि चोर मिल जाये तो उन्हें देखकर उस वस्त्र की रक्षा के लिए भयभीत होकर साधु उन्मार्ग से न जाये किन्तु हर्ष-शोकरहित होकर देह और वस्त्रादि का व्युत्सर्ग करके समाधिभाव में स्थिर रहे। इस प्रकार संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करे।
239. A disciplined bhikshu or bhikshuni should not discolour coloured and good looking clothes, neither should he colour and beautify discoloured clothes. He should also not give his used clothes to other ascetic in hope of getting new one. He should neither borrow nor exchange clothes from other ascetics. He should also not go to another ascetic and say—“Long lived Shraman ! Please take this cloth as householders do not like it." He should also not cut it to pieces and throw.
आचारांग सूत्र (भाग २)
( ३४२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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