Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 476
________________ (7) If the ascetics defecate at public places like roads and city gates they cause health hazards, people get distressed and start hating ascetics. (8) There are chances of harming fire-bodied beings if one uses places like cremation grounds or where coal or ash is made from wood. There are also chances of harming other living organisms as it is difficult to see such beings in ground covered with ash or coal. (9) There are chances of inviting displeasure of deities if one uses memorials and temples of the dead, under trees or in jungle. (10) Use of water-bodies, river banks or canals involves harming water-bodied beings. As such places are considered auspicious, such act invites wrath of masses and infamy. (11) Using farms of vegetables (etc.) causes harm to plant-bodied beings. It has been advised to have prudence of avoiding all these faults and carefully observing five self-regulations while attending to nature's call. (Acharanga Vritti leafs 408-410 and Acharanga Churni foot notes 231-239) विशेष शब्दों की व्याख्या-वृत्तिकार एवं चूर्णिकार की दृष्टि से मट्टियाकडाए-मिट्टी आदि के बर्तन पकाने का कर्म किया जाता हो, उस पर। आमोयानि-कचरे के पुँज। घसाणि-पोली भूमि, फटी हुई भूमि। भिलुयाणि-दरारयुक्त भूमि। विज्जलाणि-कीचड़ वाली जगह। कडवाणि-ईख के डण्डे। पगत्ताणि-बड़े-बड़े गहरे गड्ढे। पदुग्गाणि-कोट की दुर्गम्य दीवार। माणुसरंधाणि-चूल्हे आदि पर भोजन पकाया जाता हो आदि। महिसकरणाणि आदि-जहाँ भैंस आदि के उद्देश्य से कुछ बनाया जाता है या स्थापित किया जाता है अथवा करण का अर्थ है आश्रय। (आचा. चूर्णि मू. पा. टि., पृ. २३३) ___आसकरण-अश्व-शिक्षा देने का स्थान-अश्वकरण है, आदि। वेहाणसट्टणेसु-मनुष्यों को फाँसी आदि पर लटकाने के स्थानों में। गिद्धपइट्ठणेसु-जहाँ आत्म-हत्या करने वाले गिद्ध आदि के भक्षणार्थ रुधिरादि से लिपटे हुए शरीर को उनके सामने डाल देते हैं। तरुपगडणट्ठणेसु-जहाँ मरणाभिलाषी लोग अनशन करके तरुवत् पड़े रहते हैं। अथवा पीपल, बड़ आदि वृक्षों से जो मरने का निश्चय करके अपने आपको ऊपर से गिराता है उसे तरुप्रपतन स्थान कहते हैं। मेरुपवडण?णेसु-मेरु का अर्थ है पर्वत। पर्वत से गिरने के स्थानों में। (निशीथ चूर्णि उ. १२) उज्जाण का अर्थ है-'उद्यान'। निशीथ चूर्णि में ‘उज्जाण' और 'निजाण' (जहाँ शस्त्र या शास्त्र रखे जाते हों) दोनों प्रकार के स्थलों में, बल्कि उद्यानगृह, उद्यानशाला, निर्याणगृह और निर्याणशाला - आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४२६ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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