Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 498
________________ cloth and other things; stuffed human figures; dresses made of multicoloured things; things made of wood, such as a chariot; books; paintings and frescoes; shapes like swastika made of beads or gems; images and other things made of ivory; variety of leaves made by cutting sheets; various things made by wrappings and coatings; and other numerous forms made of a variety of things. He should never resolve to go to some place to see these forms. All other details about regulations in context of form should be taken as mentioned about regulations in context of sound (11th chapter) leaving aside the four types of instrumental sounds. विवेचन - इस एक ही सूत्र द्वारा शास्त्रकार ने कतिपय पदार्थों के रूपों का तथा अन्य उस प्रकार के विभिन्न रूपों को उत्सुकतापूर्वक देखने का निषेध किया है। इस सूत्र में सुन्दर वस्तुओं के स्वरूप पर विशेष विवेचन करते हुए आचार्य श्री आत्माराम जी म. लिखते हैं प्रस्तुत सूत्र में रूप-सौन्दर्य को देखने का निषेध किया गया है। इसमें बताया गया है कि चार कारणों से वस्तु या मनुष्य के सौन्दर्य में अभिवृद्धि होती है - ( १ ) फूलों को गूँथकर उनसे माला गुलदस्ता आदि बनाने से पुष्पों का सौन्दर्य एवं उन्हें धारण करने वाले व्यक्ति की सुन्दरता भी बढ़ जाती है। (२) वस्त्र आदि से आवृत्त व्यक्ति भी सुन्दर प्रतीत होता है । विविध प्रकार की पोशाक भी सौन्दर्य को बढ़ाने का एक साधन है । (३) विविध साँचों में ढालने से आभूषणों का सौन्दर्य चमक उठता है और उन्हें पहनकर स्त्री-पुरुष भी विशेष सुन्दर प्रतीत होने लगते हैं। (४) वस्त्रों की सिलाई करने से उनकी सुन्दरता बढ़ जाती है और विविध फैशनों से सिलाई किए हुए वस्त्र मनुष्य की सुन्दरता को और अधिक चमका देते हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि विविध संस्कारों से पदार्थों सौन्दर्य में अभिवृद्धि हो जाती है। साधारण-सी लकड़ी एवं पत्थर पर चित्रकारी करने से वह असाधारण प्रतीत होने लगती है। उसे देखकर मनुष्य का मन मोहित हो उठता है। इसी तरह हाथी दाँत, कागज, मणि आदि पर किया गया विविध कार्य एवं चित्रकला आदि के द्वारा अनेक वस्तुओं को देखने योग्य बना दिया जाता है और कलाकृतियाँ उस समय के लिए नहीं, बल्कि जब तक वे रहती हैं मनुष्य के मन को आकर्षित किए बिना नहीं रहती हैं। इससे उस युग की शिल्प की एक झाँकी मिलती है, जो उस समय विकास के शिखर पर पहुँच चुकी थी । उस समय मशीनों अभाव में भी मानव वास्तुकला एवं शिल्पकला में आज से अधिक उन्नति कर चुका था। आचारांग सूत्र (भाग २) Jain Education International ( ४४६ ) For Private & Personal Use Only Acharanga Sutra (Part 2) www.jainelibrary.org

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