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(b) In case some householder extracts or cleans dirt from the eyes, ears, teeth or nails of an ascetic, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body.
(c) In case some householder cuts or dresses the long hair on an ascetic's head, body, eyebrows, armpits or private parts, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body.
(d) In case some householder removes or wipes of nit or lice from an ascetic's head, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body.
परिचर्यारूप पर-क्रिया-निषेध
३४०. (क) से सिया परो अंकंसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावित्ता पायाई आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा (णो तं साइए णो तं णियमे) एवं हेट्ठिमो गमो पायाइ भाणियव्यो।
(ख) से सिया परो अंकंसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावित्ता हारं वा अड्ढहारं वा उरत्थं वा गेवेयं वा मउडं वा पालंबं वा सुवण्णसुत्तं वा आविंधेज्ज वा पिणिहेज्ज वा, णो तं साइए णो तं णियमे।
(ग) से सिया परो आरामंसि वा उज्जाणंसि वा णीहरित्ता वा विसोहित्ता वा पायाई आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा णो तं साइए णो तं णियमे एवं णेयव्या अण्णमण्णकिरिया वि।
३४०. (क) कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलँग पर लिटाकर या करवट बदलवाकर उसके चरणों को वस्त्रादि से एक बार या बार-बार भलीभाँति पोंछकर साफ करे; साधु इसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए। इसके बाद चरणों से सम्बन्धित नीचे के पूर्वोक्त ९ सूत्रों में जो पाठ कहा गया है, वह सब पाठ यहाँ भी कहना चाहिए।
(ख) कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलँग पर लिटाकर या करवट बदलवाकर उसको हार (अठारह लड़ी वाला), अर्धहार (नौ लड़ी का), वक्ष-स्थल पर पहनने योग्य आभूषण, गले का आभूषण, मुकुट, लम्बी माला, सुवर्ण सूत्र बाँधे या पहनाए तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उससे ऐसा कराए। पर-क्रिया-सप्तिका : त्रयोदश अध्ययन ( ४६३ ) Para-Kriya Saptika : Thirteenth Chapter
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