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परकिरिया सत्तिक्कयं : तेरसमं अज्झयणं पर-क्रिया-सप्तिका : त्रयोदश अध्ययन : षष्ठ सप्तिका PARA-KRIYA SAPTIKA : THIRTEENTH CHAPTER : SEPTET SIX
ACTION OF THE OTHER SEPTET
पर-क्रिया-स्वरूप
३३४. परकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं णो तं साइए णो तं णियमे।
३३४. पर अर्थात् गृहस्थ के द्वारा आध्यात्मिकी अर्थात् मुनि के शरीर पर की जाने वाली काय-व्यापाररूपी क्रिया-कर्मवन्धन जननी है, (अतः) मुनि उसे मन से भी न चाहे, न उसके लिए वचन से कहे, न ही काया से उसे कराए। FORM OF PARA-KRIYA
334. An activity related to the body done by a householder on the body of an ascetic is a cause of bondage of karmas; therefore, an ascetic should avoid it with mind speech and body. ___विवेचन-चूर्णिकार एवं वृत्तिकार के अनुसार-'स्व' अर्थात् साधु और साधु के निमित्त गृहस्थ द्वारा की जाने वाली क्रिया-चेष्टा, व्यापार या कर्म, पर-क्रिया है। वह पर-क्रिया कर्म-संश्लेषिकीकर्मबन्ध का कारण तब होती है, जब दूसरे (गृहस्थ) द्वारा की जाते समय मुनि मन से उसमें रुचि ले, मन से चाहे या कहकर करा ले या कायिक संकेत द्वारा करावे। अतः साधु इसे न तो मन से चाहे, न वचन और काया से कराए।
Elaboration According to Churni and Vritti self means ascetic while actions including efforts, activities and deeds, performed by a householder for the ascetic are called para-kriya. Such para-kriya becomes cause of bondage of karmas when the ascetic gets involved in it by desiring for it, telling to do it, or making a gesture to get it done. Therefore an ascetic should avoid it with mind, speech and body.
पाद-परि कर्म पर-क्रिया निषेध
३३५. (क) से सिया परो पायाइं आमज्जिज्ज वा पमज्जिज्ज वा, णो तं साइए णो तं णियमे। * आचारांग सूत्र (भाग २)
( ४५२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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