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(च) कोई गृहस्थ साधु के चरणों को लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण से उबटन करे अथवा उपलेप करे तो साधु मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए।
(छ) कोई गृहस्थ साधु के चरणों को प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से प्रक्षालन करे अथवा अच्छी तरह से धोए तो साधु उसे मन से न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
(ज) कोई गृहस्थ साधु के पैरों का इसी प्रकार के किन्हीं विलेपन द्रव्यों से एक बार या बार-बार आलेपन-विलेपन करे तो साधु उसमें मन से भी रुचि न ले और न ही वचन एवं काया से उसे कराए।
(झ) कोई गृहस्थ साधु के चरणों को किसी प्रकार के विशिष्ट धूप से धूपित और प्रधूपित करे तो उसे मन से न चाहे और न ही वचन एवं काया से उसे कराए।
(ट) कोई गृहस्थ साधु के पैरों में लगे हुए छूटे या काँटे आदि को निकाले या उसे शुद्ध करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए।
(ठ) कोई गृहस्थ साधु के पैरों में लगे रक्त और मवाद को निकाले या उसे निकालकर शुद्ध करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए। CENSURE OF FOOT PARA-KRIYA
335. (a) In case some householder wipes the feet of an ascetic once just a little or properly cleans by wiping many times, the ascetic should not get involved in that para-kriya by desiring for it, telling to do it or making a gesture to get it done. In other words he should avoid it with mind, speech and body.
(b) In case some householder massages, gently or with pressure, the feet of an ascetic once or many times, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body.
(c) In case some householder touches in order to blow air on or paint the feet of an ascetic, the ascetic should avoid that parakriya with mind, speech and body.
(d) In case some householder anoints, rubs or massages the feet of an ascetic with oil, butter or fat, the ascetic should avoid
that para-kriya with mind, speech and body. । आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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