________________
ト・シャンがいないメンバーの本:ロントミントのスパコントロロジストロントコントロングイロンバイロンロンベイロンスーロングジストロングコントロいです
(ज) से सिया परो (कार्यसि वणं) अण्णयरेणं सत्थजाएणं अच्छिंदित्ता वा विच्छिंदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा, णो तं साइए णो तं णियमे।
३३७. (क) कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए व्रण (घाव) को एक बार पोंछे या । बार-बार अच्छी तरह से पोंछकर साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए।
(ख) कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए व्रण को दबाए या अच्छी तरह मर्दन करे तो * साधु मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
__(ग) कोई गृहस्थ साधु के शरीर हुए व्रण के ऊपर तेल, घी या वसा चुपड़े, मसले, लगाए या मर्दन करे तो साधु मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
(घ) कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए व्रण के लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण आदि विलेपन द्रव्यों का आलेपन-विलेपन करे तो साधु मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
(च) कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए व्रण को प्रासुक शीतल या उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोए तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
(छ) कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए व्रण को किसी प्रकार के शस्त्र से थोड़ा-सा छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न ही उसे वचन एवं काया से कराए।
(ज) कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए व्रण को किसी विशेष शस्त्र से थोड़ा-सा या विशेष रूप से छेदन करके उसमें से मवाद या रक्त निकाले या उसे साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए। CENSURE OF PARA-KRIYA ON WOUNDS
337. (a) In case some householder wipes a wound on the body of an ascetic once or many times, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body.
(b) In case some householder massages, gently or with pressure 9 a wound on the body of an ascetic once or many times, the ascetic
should avoid that para-kriya with mind, speech and body. आचारांग सूत्र (भाग २)
Acharanga Sutra (Part 2)
ACE*
CANS
*
"*
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org