Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 487
________________ ३१९. से भिक्खू वा २ अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा-कच्छाणि वा नूमाणि वा गहणाणि वा वणाणि वा वणदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वयदुग्गाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ३१९. साधु-साध्वी विभिन्न शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि नदी तट के जल-बहुल प्रदेशों, (कच्छों) में, भूमिगृहों या प्रच्छन्न स्थानों में, वृक्षों से सघन एवं गहन प्रदेशों में, वनों में, वन के दुर्गम प्रदेशों में, पर्वतों पर या पर्वतीय दुर्गों में तथा इसी प्रकार के अन्य प्रदेशों में, किन्तु उन शब्दों को श्रवण करने के उद्देश्य से जाने का संकल्प न करे। 319. A bhikshu or bhikshuni hears various sounds such as those produced in areas in proximity of river banks with plenty of water, buildings or other covered places, thick growth of trees or other such dense vegetation, forests, impenetrable areas in forests, mountains, forts on mountains or other such places. He should never resolve to go to some place to hear these sounds. ____३२0. से भिक्खू वा २ अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेइ, तं जहा-गामाणि वा नगराणि वा निगमाणि वा रायहाणि वा आसम-पट्टण-सण्णिवेसाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं सद्दाई णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ३२०. इसी प्रकार गाँवों में, नगरों में, निगमों में, राजधानी में, आश्रम, पत्तन और सन्निवेशों में या अन्य इसी प्रकार के नाना रूपों में होने वाले शब्दों को सुनने की लालसा से न जाए। 320. A bhikshu or bhikshuni hears various sounds such as those produced in villages, cities, markets, capitals, hermitages, ports, districts or other such places. But he should never resolve to go to some place to hear these sounds. ३२१. से भिक्खू वा २ अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा-आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई सद्दाइं णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ३२१. तथा आरामागारों में, उद्यानों में, वनों में, वनखण्डों में, देवकुलों में, सभाओं में, प्याऊओं में या अन्य इसी प्रकार के विविध स्थानों में कर्णप्रिय शब्दों को सुनने की उत्सुकता से जाने का संकल्प न करे। शब्द-सप्तिका : एकादश अध्ययन ( ४३५ ) Shabda Saptika : Eleventh Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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