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३३०. से भिक्खू वा २ अण्णयराइं विरूवरूवाइं महासवाई एवं जाणेज्जा, तं जहा-बहुसगडाणि वा बहुरहाणि वा बहुमिलक्खूणि वा बहुपच्चंताणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं महासवाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्ज गमणाए।
३३0. साधु-साध्वी अन्य नाना प्रकार के ऐसे महानव स्थानों को (अत्यन्त पाप उत्पन्न होने के स्थान) जाने, जैसे कि जहाँ बहुत-से शकट, वहुत-से रथ, बहुत-से म्लेच्छ, बहुत-से सीमा-प्रान्तीय लोग एकत्रित हुए हों अथवा उस प्रकार के नाना महापाप उत्पत्ति के स्थान हों, वहाँ कानों से शब्द-श्रवण के उद्देश्य से जाने का मन में संकल्प न करे।
330. A bhikshu or bhikshuni should find about numerous other such places where there are numerous chances of acquiring bondage of karmas, such as places where many demons, chariots, rustics and people of bordering states have gathered or other such places. But he should never resolve to go to some place to hear these sounds.
३३१. से भिक्खू वा २ अण्णयराइं विरूवरूवाइं महुस्सवाइं एवं जाणेज्जा तं जहाइत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा डहराणि वा मज्झिमाणि वा आभरणविभूसियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णच्चंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंताणि वा परिभायंताणि वा विछड्डयमाणाणि वा विग्गोवयमाणाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं महुस्सवाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्ज गमणाए।
३३१. साधु-साध्वी नाना प्रकार के महोत्सवों को इस प्रकार जाने कि जहाँ स्त्रियाँ, पुरुष, वृद्ध, बालक और युवक आभूषणों से विभूषित होकर गीत गाते हों, बाजे बजाते हों, नाचते हों, हँसते हों, आपस में खेलते हों, रति-क्रीड़ा करते हों तथा विपुल अशन, पान, खादिम
और स्वादिम पदार्थों का उपभोग करते हों, परस्पर बाँटते हों या परोसते हों, त्याग करते हों, परस्पर तिरस्कार करते हों, उनके शब्दों को तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत-से महोत्सवों में होने वाले शब्दों को कान से सुनने की उत्सुकतावश जाने का मन में संकल्प न करे।
331. A bhikshu or bhikshuni should find about numerous other such festive places where well dressed women, men, old, young and children adorned with ornaments sing, play musical instruments, dance, laugh, play around, indulge in erotic activities; and eat, distribute, serve and abandon large quantities of food or even insult each other. But he should never resolve to go to some place to hear these sounds. आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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