________________
बीओ उद्देसओ
द्वितीय उद्देशक
LESSON TWO
अवग्रहीत स्थान के सम्बन्ध में विवेक __२७२. से आगंतारेसु वा ४ अणुवीई उग्गहं जाएज्जा। जे तत्थ ईसरे जे समाधिट्ठाए ते उग्गहं अणुण्णवित्ता(ज्जा)-कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिन्नायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स उग्गहे, जाव साहम्मिया एताव उग्गहं ओगिहिस्सामो तेण परं विहरिस्सामो।
२७२. साधु-साध्वी धर्मशाला आदि स्थानों में जाकर, स्थान को देखभालकर अवग्रह की याचना करे। स्थान की अनुज्ञा माँगने के लिए उस स्थान के स्वामी या अधिष्ठाता (नियुक्त अधिकारी) से कहे कि "आयुष्मन् गृहस्थ ! हम यहाँ ठहरने की आज्ञा चाहते हैं। आप जितने समय तक और जितने क्षेत्र में निवास करने की हमें अनुज्ञा देंगे, उतने समय तक और उतने ही क्षेत्र में हम ठहरेंगे। हमारे जितने भी साधर्मिक साधु यहाँ आयेंगे, वे भी इसी नियम का अनुसरण करेंगे। आपके द्वारा नियत अवधि के पश्चात् वे और हम यहाँ से विहार कर जायेंगे।" PRUDENCE ABOUT AN ACCEPTED PLACE
272. Going into an upashraya, house etc. a bhikshu or bhikshuni should carefully inspect a place suitable for ascetics and then seek permission to stay there. Seeking permission to stay from the owner or manager of that place he should say, "Long lived one ! We will only stay for the specific period in the specific area permitted by you. Other co-religionist ascetics coming here will also stay only for the specific period in the specific area permitted by you. After that period we all will leave this place."
२७३. से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा दंडए वा छत्तए वा जाव चम्मछेदणए वा तं णो अंतोहितो बाहिं नीणेज्जा, बहियाओ वा णो अंतो पवेसिज्जा, सुत्तं वा ण पडिबोहेज्जा, णो तेसिं किंचि वि अप्पत्तियं पडिणीयं करेज्जा।
आचारांग सूत्र (भाग २)
( ३८० )
Acharanga Sutra (Part 2)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org