________________
急須
shailesh deshdh
२९०. यदि स्वाध्याय भूमि में दो-दो, तीन-तीन, चार-चार या पाँच-पाँच के समूह में एकत्रित होकर साधु जाना चाहते हों तो वे वहाँ जाकर एक-दूसरे के शरीर का परस्पर आलिंगन (स्पर्श) न करें, न ही विविध प्रकार से एक-दूसरे से चिपटें, न वे परस्पर चुम्बन करें, न ही दाँतों और नखों से एक-दूसरे का छेदन करें।
यही (निषीधिका के उपयोग का विवेक ही ) उस भिक्षु या भिक्षुणी के जीवन का आचार सर्वस्व है। इसी को अपने लिए श्रेयस्कर माने ।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
PROHIBITIONS AT NISHIDHIKA
290. If the ascetics want to go to a nishidhika in groups of two, three, four or five then after arriving there they should not indulge in embracing (touching), hugging various ways, kissing or use teeth or nails to wound each other.
॥ द्वितीय सप्तिका समाप्त ॥
॥ नौवाँ अध्ययन समाप्त ॥
This (prudence in use of nishidhika) is the totality (of conduct including that related to knowledge) for that bhikshu or bhikshuni. And so should he pursue.
-So I say.
आचारांग सूत्र (भाग २)
Jain Education International
|| END OF SEPTET TWO || || END OF NINTH CHAPTER ||
४०६ )
For Private Personal Use Only
Acharanga Sutra (Part 2)
42010
www.jainelibrary.org