Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 462
________________ ------ --- - --- - और सत्त्व का समारम्भ करके औद्देशिक दोषयुक्त बनाया है, तो उस प्रकार का अपुरुषान्तरकृत यावत् काम में नहीं लिया गया हो तो उस अपरिभुक्त स्थण्डिल में या अन्य :. उस प्रकार के किसी एषणादि दोष से युक्त स्थण्डिल में मल-मूत्र का विसर्जन नहीं करे। ___यदि वह यह जान ले कि पूर्वोक्त स्थण्डिल पुरुषान्तरकृत यावत् अन्य लोगों द्वारा उपभुक्त है और उस प्रकार के अन्य दोषों से रहित है तो साधु-साध्वी उस पर मल-मूत्र विसर्जन कर सकते हैं। 295. A bhikshu or bhikshuni should find if some devout layman has prepared a sthandil ground for offering to many Shramans, Brahmins, guests, destitute and beggars after counting their numbers and the process involves violence of things that breathe, exist, live or have any essence or potential of life. He should not use a sthandil having these or other faults for discarding excreta if it has not already been used. If he comes to know that the said sthandil has already been used by others and is free of any other related faults he may use it for discarding excreta. उच्चार-प्रस्रवण विसर्जन के निषिद्ध स्थान __२९६. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा अस्सिंपडियाए कयं वा कारियं वा पामिच्चियं वा छन्नं वा घटुं वा मटुं वा लित्तं वा समटुं वा संपधूवितं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। २९६. साधु-साध्वी यदि इस प्रकार का स्थण्डिल जाने, जोकि निर्ग्रन्थ-निष्परिग्रही साधुओं को देने की भावना से किसी गृहस्थ ने बनाया है अथवा बनवाया है या उधार लिया है, उस पर छप्पर छाया है या छत डाली है, उसे घिसकर सम किया है, कोमल या चिकना बना दिया है, उसे लीपा-पोता है, सँवारा है, धूप आदि से सुगन्धित किया है अथवा अन्य भी इस प्रकार के आरम्भ-समारम्भ करके उसे तैयार किया है तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर वह मल-मूत्र विसर्जन नहीं करे। PROHIBITED PLACES FOR DISPOSAL 296. A bhikshu or bhikshuni should find if a sthandil has been made or got made or borrowed by a householder specifically आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४१२ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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