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पुन्नागवणंसि वा अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु पत्तोवएसु वा पुप्फोवएसु वा फलोवएसु वा बीओवएसु वा हरिओवएसु वा णो उच्चार-पासणं वोसिरेज्जा।
३१२. साधु-साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ बीजक वृक्ष का वन है, पटसन का वन है, धातकी (आँवला) वृक्ष का वन है, केवड़े का उपवन है, आम्रवन है, अशोकवन है, नागवन है, या पुन्नागवृक्षों का वन है, ऐसे तथा अन्य उस प्रकार के स्थण्डिल, जो पत्रों, पुष्पों, फलों, बीजों या हरियाली से युक्त हैं, उनमें मल-मूत्र का विसर्जन न करे।
312. A bhikshu or bhikshuni should find if a sthandil is at places like woods or plantations of Bijak trees, jute plants, amla (Emblica officinalis) trees, kevada (screw pine) shrubs, mango trees, Ashoka trees, naag (rose chestnut) plants, putrag trees or other such places that abound in leaves, flowers, fruits, seeds or vegetation. If it is so, such sthandil should not be used by an ascetic for excreta disposal.
विहित स्थान
__ ३१३. से भिक्खू वा २ सयपाययं वा परपाययं गहाय से त्तमायाए एगंतमवक्कमे, अणावायंसि असंलोयंसि अप्पपाणंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा उवस्सयंसि तओ संजयामेव उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। उच्चार-पासवणं वोसिरित्ता से त्तमायाए एगंतमवक्कमे, अणावाहंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा झामथंडिल्लंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि अचित्तंसि तओ संजयामेव उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा।
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वदे॒हिं जाव जएज्जासि। -त्ति बेमि।
॥ तइयं सत्तिक्कयं सम्मत्तं ॥
॥ दसमं अज्झंयणं सम्मत्तं ॥ ३१३. संयमशील साधु-साध्वी स्व-पात्रक (स्व-भाजन) अथवा पर-पात्रक लेकर एकान्त स्थान में चला जाये, जहाँ पर न कोई आता-जाता हो और न कोई देखता हो या जहाँ कोई रोक-टोक न हो तथा जहाँ द्वीन्द्रिय आदि जीव-जन्तु यावत् मकड़ी के जाले भी न हों, ऐसे बगीचे या उपाश्रय में अचित्त भूमि पर बैठकर यतनापूर्वक मल-मूत्र का विसर्जन करे। आचारांग सूत्र (भाग २)
( ४२० ) Acharanga Sutra (Part 2)
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