________________
आम व सचित्त इक्षु ग्रहण करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का विधान है। लहसुन के प्रकरण में चूर्णिकार तथा वृत्तिकार रोगादि की स्थिति में ग्राह्य तथा वैसे अग्राह्य बताते हैं । ( चूर्णि मूल पाठ, मुनि जम्बूविजय जी, पृ. २२३-२२४)
Elaboration-The details mentioned in aphorisms 274-283 regarding staying in mango orchard, sugar-cane or garlic farm and eating these things or not are from a relative viewpoint. The commentator (Churni) writes in this context
It is necessary for an ascetic to discern between acceptable and not acceptable when he wants to eat things like mango. If according to the ascetic code they are not contaminated and are sliced he can eat otherwise not. In chapter 15 of Nishith Sutra there is a procedure of doing the Chaturmasik atonement if one eats sachit mango or sugarcane. As regards garlic the commentators (Churni and Vritti) say that it is allowed only in ailing condition otherwise not. (Churni Text, Muni Jambuvijayaji, p. 223-224)
अवग्रह-ग्रहण में सप्त- प्रतिमा
२८४. से भिक्खू वा २ आगंतारेसु वा ४ जावोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा इच्चेयाइं आयतणाई उवाइकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं उग्गहं ओगिण्हित्तए
(१) तत्थ खलु इमा पढमा पढिमा - से आगंतारेसु वा ४ अणुवीयि उग्गहं जाएज्जा जाव विहरिस्सामो । पढमा पडिमा ।
(२) अहावरा दोच्चा पडिमा जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ 'अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए उग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं भिक्खूणं उग्गहे उग्गहिए उवल्लिस्सामि ।' दोच्चा पडिमा ।
(३) अहावरा तच्चा पडिमा जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ - ' अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठा उग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं च उग्गहे उग्गहिए णो उवल्लिस्सामि ।' तच्चा पडिमा ।
(४) अहावरा चउत्था पडिमा जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ - ' अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए उग्गहं णो ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं च उग्गहे उग्गहिए उवल्लिस्सामि ।' चउत्था पडिमा |
अवग्रह प्रतिमा : सप्तम अध्ययन
Jain Education International
३८७ )
Avagraha Pratima: Seventh Chapter
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org