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चार स्थान प्रतिमा ___ २८७. इच्चेयाइं आयतणाई उवाइकम्म अह भिक्खू इच्छेज्जा चउहि पडिमाहिं ठाणं
ठाइत्तए* (१) तत्थिमा पढमा पडिमा-अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा, अवलंबिज्जा, काएण * विपरि कम्माइ, सवियारं ठाणं ठाइस्सामि। पढमा पडिमा।
(२) अहावरा दोच्चा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा, अवलंबिज्जा, णो काएण विप्परिकम्माइ, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि ति। दोच्चा पडिमा। ___ (३) अहावरा तच्चा पडिमा-अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा, अवलंबिज्जा, णो काएण विप्परिकम्माइ, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति। तच्चा पडिमा।
(४) अहावरा चउत्था पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा, णो अवलंबिज्जा, णो काएण विप्परिकम्माइ, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, वोसट्टकाए वोसट्टकेसमंसु-लोम-णहे संणिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति। चउत्था पडिमा।
इच्चेयासिं चउण्हं पडिमाणं जाव पग्गहियतरायं विहरिज्जा, णेव किंचि वि वइज्जा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्षुणीए वा जाव जइज्जासि। -त्ति बेमि।
॥ पढमं सत्तिक्कयं सम्मत्तं ॥
॥ अट्ठमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ___२८७. इन पहले बताये गये तथा आगे कहे जाने वाले कर्मोपादानरूप दोष स्थानों को 0 छोड़कर साधु इन चार प्रतिमाओं का आश्रय लेकर किसी स्थान में ठहरने की इच्छा करे
(१) प्रथम प्रतिमा-मैं अपने कायोत्सर्ग के समय अचित्त स्थान में निवास करूँगा, अचित्त दीवार आदि का शरीर से सहारा लूँगा तथा हाथ-पैर आदि सिकोड़ने-फैलाने के लिए परिस्पन्दन आदि करूँगा तथा वहीं (मर्यादित भूमि में ही) थोड़ा-सा सविचार-पैर आदि से विचरण करूँगा। यह पहली प्रतिमा हुई।
(२) दूसरी प्रतिमा-मैं कायोत्सर्ग के समय अचित्त स्थान में रहूँगा और अचित्त दीवार आदि का शरीर से सहारा लूँगा तथा हाथ-पैर आदि सिकोड़ने-फैलाने के लिए परिस्पन्दन आदि करूँगा; किन्तु मर्यादित भूमि में पैर आदि से थोड़ा-सा भी भ्रमण नहीं करूंगा।
ॐ स्थान-सप्तिका : अष्टम अध्ययन
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Sthana Saptika : Eighth Chapter
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