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(६) छठी प्रतिमा-कोई साधु यह प्रतिज्ञा धारण करता है मैं जिस स्थान की याचना करूँगा उस अवगृहीत स्थान में पहले से ही रखा हुआ शय्या-संस्तारक आदि मिल जाये, जैसे कि इक्कड नामक तृण विशेष यावत् पराल आदि; तो उन पर आसन-स्थान करूँगा। वैसा सहज प्राप्त शय्या-संस्तारक न मिले तो उत्कटुक अथवा निषद्या-आसन द्वारा रात्रि व्यतीत करूँगा। यह छठी प्रतिमा है।
(७) सातवी प्रतिमा-जिस स्थान की अवग्रह-अनुज्ञा ली हो, यदि उसी स्थान पर पृथ्वीशिला, काष्ठशिला तथा पराल आदि बिछा हुआ प्राप्त हो तो वहाँ रहूँगा, वैसी सहज संस्तृत पृथ्वीशिला आदि न मिले तो उत्कटुक या निषद्या-आसनपूर्वक बैठकर रात्रि व्यतीत करूँगा। यह सातवी प्रतिमा है। ___इन सात प्रतिमाओं में से जो साधु किसी एक प्रतिमा को स्वीकार करता है, वह इस प्रकार न कहे-मैं उग्राचारी हूँ, दूसरे शिथिलाचारी हैं। अभिमान एवं गर्व छोड़कर समभावपूर्वक रहे। इत्यादि समस्त वर्णन पिण्डैषणा अध्ययन (सूत्र ७७) के अनुसार जान लेना चाहिए।
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SEVEN REGULATIONS REGARDING PLACE OF STAY
284. A bhikshu or bhikshuni should live at places like dharmashala after taking permission according to the said procedure. He should not indulge in any unpleasant or objectionable activity. Also he should avoid earlier mentioned place related faults with regard to interaction with householders and their sons at the place of stay.
The ascetic should accept a place of stay observing the following pratimas (regulations), ___ (1) First Pratima-Properly considering the conditions of dharmashala and other places of stay I shall stay there in the particular area for the particular period allowed by the owner. This is the first pratima. ___ (2) Second Pratima-I will stay in the upashraya begged by the ascetics who have resolved to beg for place of stay for other ascetics. This is the second pratima. अवग्रह प्रतिमा : सप्तम अध्ययन
( ३८९ ) Avagraha Pratima : Seventh Chapter
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