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२६९. साधु-साध्वी ऐसे आवास स्थान को जाने कि उसमें जाने का मार्ग गृहस्थ के घर के बीचोंबीच से है या गृहस्थ के घर से बिल्कुल सटा हुआ है तो प्रज्ञावान् साधु को ऐसे स्थान में निकलना और प्रवेश करना तथा वाचना यावत् धर्मानुयोग-चिन्तन करना उचित नहीं है। ऐसे उपाश्रय का ग्रहण नहीं करना चाहिए।
269. A disciplined bhikshu or bhikshuni should find if a place has access through a householder's residence or adjacent to it. For a wise ascetic it is not proper to enter or come out or meditate or do other ascetic activities at such place. He should avoid accepting such place.
२७०. से भिक्खू वा २ से जं पुण उग्गहं जाणेज्जा इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणा ठिता जहा सेज्जाए आलावगा, णवरं उग्गहवत्तव्यया।
२७0. साधु-साध्वी ऐसे आवास स्थान को जाने, जिसमें गृहस्थ-गृह-स्वामी यावत् उसकी नौकरानियाँ परस्पर एक-दूसरे पर आक्रोश करती हों, लड़ती-झगड़ती हों तथा परस्पर एक-दूसरे के शरीर पर तेल, घी आदि लगाती हों, इसी प्रकार स्नानादि, शीतल सचित्त या उष्ण जल से गात्रसिंचन आदि करती हों या नग्न दशा में बैठती हों इत्यादि वर्णन शय्याऽध्ययन के (सूत्र ११३-११७) आलापकों की तरह यहाँ समझ लेना चाहिए। वहाँ वह वर्णन शय्या के विषय में है, यहाँ आवास के विषय में है। अर्थात् इस प्रकार के किसी भी स्थान का अवग्रह ग्रहण नहीं करना चाहिए।
270. A bhikshu or bhikshuni should find if the owner, his wife, servants etc. of the available upashraya (habitually) abuse or beat each other or create disturbance; rub or apply oil, butter etc. on each other's body; sprinkle or pour cold or hot water on each other's body and wash or bathe each other's body with cold or hot water and stand or sit naked. Detailed description of these should be taken from aphorisms 113-117 of Shaiyyaishana chapter. There the description is about bed and here it is about place of stay. If it is so, a wise ascetic should not stay at any such place.
आचारांग सूत्र (भाग २)
( ३७८ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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