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इक्षुवन में अवग्रह याचना
२८०. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा उच्छुवणं उवागच्छित्तए । जे तत्थ ईसरे जाव उग्गहियंसि अह भिक्खू इच्छेज्जा उच्छु भोत्तए वा पायए वा से जं उच्छ्रं जाणेज्जा सअंडं जाव णो पडिगाहेज्जा अतिरिच्छच्छिण्णं तहेव तिरिच्छच्छिण्णे वि तहेव ।
२८०. वह साधु-साध्वी यदि इक्षुवन में ठहरना चाहें तो जो वन के स्वामी या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी हो, उनसे पूर्वोक्त विधिपूर्वक क्षेत्र - काल की सीमा खोलकर अवग्रह की आज्ञा प्राप्त करके वहाँ निवास करे। यदि वहाँ रहते हुए साधु ईख खाना या उसका रस पीना चाहे तो पहले यह जाने कि वे ईख अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं है ? यदि हों तो साधु उन्हें अप्रासुक अनेषणीय जानकर ग्रहण नहीं करे। यदि वे अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त नहीं हैं, किन्तु तिरछे कटे हुए या टुकड़े-टुकड़े किये हुए नहीं हैं, तब भी अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे। यदि साधु यह जान जाय कि वे ईख अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तिरछे कटे हुए तथा टुकड़े-टुकड़े किये हुए हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर ले सकता है। यह समूचा वर्णन आम्रवन में ठहरने तथा आम्रफल ग्रहण करने की तरह समझना चाहिए।
STAYING IN A SUGAR-CANE FARM
280. If a bhikshu or bhikshuni wants to stay in a sugar-cane farm he should seek permission to stay there from the owner or manager of that place duly specifying the period and area. While staying there if the ascetic wants to sugar-cane or drink sugarcane-juice he should find if the sugar-cane there are infested with eggs (etc. up to cobwebs). If so he should not take considering them to be faulty and unacceptable. If they are not infested with eggs (etc. up to cobwebs) but are neither sliced nor cut into pieces, he should not take considering them to be faulty and unacceptable. If the ascetic finds that the sugar-cane are not infested with eggs (etc. up to cobwebs) and are also sliced and cut into pieces, he may take them considering them to be faultless and acceptable. Details should be taken as mentioned with reference to mangoes.
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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