Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 420
________________ उपकरण हैं उनको उनसे अवग्रह-अनुज्ञा लिए बिना तथा प्रतिलेखन-प्रमार्जन किये बिना ग्रहण न करे। अपितु पहले उनसे अवग्रह लेकर, तत्पश्चात् उसका प्रतिलेखन-प्रमार्जन करके फिर उस वस्तु को ग्रहण करे। ESSENTIALITY OF ACCEPTING THINGS 259. When a person gets initiated as a Shraman he takes a vow-"Now I will become a Shraman. I will become an anagar (own no house), akinchan (own no possessions), aputra (own no son and family and relations), apashu (own no cattle and other bipeds or quadrupeds) and paradattabhoji (eat what others give) and will not indulge in any sinful activity including violence. Prepared thus to observe ascetic discipline, O Bhante ! I renounce (adattadaan) to accept anything which is not given to me." Taking this vow (of adattadaan) that ascetic, on entering a village or city, should not accept anything not given to him; neither should he cause others to do so nor approve others doing so. ___That ascetic should also not take umbrella, stick, pots, nailcutters and other such equipment belonging to other ascetics with whom he got initiated or moves about without seeking their permission, inspecting and cleaning. Before taking he should first take permission from them and then inspect and clean that thing. विवेचन-इस सूत्र में साधु की तीन विशेषताएँ बताई हैं-(१) वह अपरिग्रही होता है। (२) परदत्तभोजी-भिक्षा माँगकर भोजन लाता है, तथा (३) बिना दिये कोई वस्तु ग्रहण नहीं करता। इसलिए वह कहीं भी जाए, कहीं भी किसी भी साधु के साथ रहे, जब किसी आहार, पानी, औषध, मकान, वस्त्र पात्रादि उपकरण अन्य वस्तु की आवश्यकता हो, सर्वप्रथम उस वस्तु के स्वामी या अधिकारी से अवग्रह-अनुज्ञा लेना आवश्यक है। यदि किसी साधर्मिक साधु के पास से कोई वस्तु लेनी हो तो पहले उसकी आज्ञा लेवें, फिर उस वस्तु को ग्रहण करें। यहाँ छत्र का सामान्य अर्थ है-वर्षा के समय सिर पर लिया जाने वाला ऊन का कम्बल। तथा स्थविरकल्पी मुनि विशेष कारण उपस्थित होने पर छत्र भी रख सकता है। जैसे किसी प्रदेश आचारांग सूत्र (भाग २) ( ३७० ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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