Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 422
________________ + • अवग्रह- याचना के अनेक रूप २६०. से आगंतारेसु वा ४ अणुवीइ उग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे ? जे तत्थ समाहिट्ठाए ते उग्गहं अणुण्णविज्जा - कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो; जाव आउसंतस्स उग्गहे, जाव साहम्मिया, एत्ताव तावं उग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो २६०. संयमशील साधु धर्मशाला तथा गृहस्थ के घर आदि में जाकर पहले साधुओं के आवास योग्य स्थान को भलीभाँति देखकर फिर अवग्रह - वहाँ ठहरने की आज्ञा माँगे । उस स्थान का जो स्वामी हो या जो वहाँ का अधिष्ठाता - नियुक्त अधिकारी हो, उससे अवग्रह की अनुज्ञा माँगते हुए कहे - " आयुष्मन् ! आपकी इच्छानुसार जितने काल तक रहने की तथा जितने क्षेत्र में निवास करने की तुम आज्ञा दोगे, उतने काल तक, उतने क्षेत्र में हम निवास करेंगे । यहाँ जितने भी अन्य साधर्मिक साधु आयेंगे, उनके लिए भी जितने क्षेत्र - काल की तुम्हारी आज्ञा होगी वे भी उतने ही काल तक उतने ही क्षेत्र में ठहरेंगे, उसके पश्चात् वे और हम विहार कर जायेंगे । " VARIOUS FORMS OF BEGGING 260. Going into an upashraya, house etc. a bhikshu or bhikshuni should carefully inspect a place suitable for ascetics and then seek permission to stay there. Seeking permission to stay from the owner or manager of that place he should say— "Long lived one! We will only stay for the specific period in the specific area permitted by you. Other co-religionist ascetics coming here will also stay only for the specific period in the specific area permitted by you. After that period we all will leave this place.” संभोगी साधु के साथ व्यवहार विधि २६१. से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवागच्छेज्जा जे तेण सयमेसित्तए असणे वा ४ तेण ते साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवणिमंतेज्जा, णो चेव णं परपडियाए ओगिज्झिय २ उवणिमंतेज्जा । Jain Education International २६१. इस प्रकार अवग्रहपूर्वक ग्रहण कर लेने के पश्चात् वहाँ (पूर्व स्थित साधु के पास) कोई साधर्मिक, सांभोगिक एवं समनोज्ञ (देखें - सचित्र आचारांग सूत्र, भाग १, सूत्र आचारांग सूत्र (भाग २) ( ३७२ ) Acharanga Sutra (Part 2) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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